इंद्रियों को सूक्ष्म आहार देते हुए भगवत चिंतन करना ही है तप: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, तप का अर्थ है कि जिस क्रिया से इंद्रियों और शरीर को कष्ट सहना पड़े। साधना मार्ग में इंद्रियों को विषयों से मोड़कर, उनको अपने-अपने केंद्र में स्थापित करके, इंद्रियों को सूक्ष्म आहार देते हुए भगवत चिंतन करना तप है। जैन धर्म में तप को अत्याधिक महत्व दिया गया है। इतिहास में तप के बल पर मानवों और दानवों ने अपार शक्तियां अर्जित की हैं। इन शक्तियों का सदुपयोग देवत्व कहलाता है और दुरुपयोग दानवता कहलाती है। कहा गया है कि- तपोबल रचई प्रपंच विधाता। तपबल विष्णु सकल जगत्राता।। तपबल शम्भु करहिं संहारा। तपबल शेष धरहिं महि भारा। अर्थात् इसी तप के बल से श्रीब्रह्माजी सृष्टि रचना, श्रीविष्णु भगवान् पालन,शेष भगवान् पृथ्वी धारण और शिवजी संहार करते हैं। भागवत में ऋषभदेव भगवान् कहते हैं यह शरीर तप के लिए तो मिला है न कि धन से संसार के सुखों को प्राप्त करने के लिए। तब से शुद्धि का प्रवेश ह्रदय में होता है। जीवन में नूतन प्रकाश मिलता है। भगवती अंबा ने इसी तप के बल पर भगवान शिव को प्राप्त किया। देवर्षि नारद ने हिमाचल वा मैना से कहा था कि जो तप करई कुमारि तुम्हारी। भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी।। श्री मार्कंडेय ऋषि ने तप केबल पर 8 वर्ष की अल्पायु को अमरता में बदल दिया। गृहपति ने भी तप से मृत्यु पर विजय प्राप्त की। ऐसे उदाहरण सनातन धर्म में सहस्रों हैं। तप का उल्टा पत है व्याकरण में तप से तपति और पत से पतति बनता है, जैसे आग की लपटें ऊर्ध्वगामी है अर्थात् ऊपर उठती हैं इसी प्रकार तप की शक्ति ऊपर उन्नति की ओर और पतन नीचे की ओर ले जाता है।दैत्यों में हिरण्यकशिपु,रावण, कुम्भकर्ण आदि ने तप से ही शक्तियां पाईं। दुर्भाग्यशाली थे। जो उनका प्रयोग ठीक नहीं कर पाये तप से ऊर्जा निश्चित रूप में संचित होती है। अतः तपना, कष्ट उठाना, आनंद की ओर ले जाता है। सभी भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना- श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग,गोवर्धन-जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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