पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भगवान् शंकराचार्य ने एक बात बहुत अच्छी कही है। प्रकाश हमेशा पूर्व से आता है और अंधकार हमेशा पश्चिम से आता है। तो अपना देश पूर्व में है और इंग्लैंड, अमेरिका ये सब पश्चिम में है। इतना प्रचंड प्रकाश सूर्य का, पश्चिम में जाकर अस्त हो जाता है। वहां से अंधकार चलता है। पूर्व से प्रकाश चलता है। भारतीय संस्कृति प्रकाश में है जबकि पाश्चात्य सभ्यता अंधकारमय है। इसीलिए “तमसो मा ज्योतिर्गमय” वेद का वचन है। अंधकार की ओर नहीं, अगर जाना है तो प्रकाश की ओर बढ़ो। ईश्वर की ओर बढ़ना, प्रकाश की ओर बढ़ना, माया के पीछे दौड़ना, भोगों के पीछे दौड़ना, ये अंधकार की ओर दौड़ने के समान है। तमसो मा – अंधकार की ओर मत दौड़ो। दौड़ना है तो ज्योतिर्गमय- ज्योति की ओर चलो। ईश्वर की आराधना तभी हो सकेगी जब आपका जीवन सात्विक होगा। जब आपको बारंबार सत्संग मिलता रहेगा और जीवन सात्विक होगा तो आपसे साधना हो जायेगी। अन्यथा साधना नहीं होगी। जीवन सात्विक न रहने से हृदय सात्विक नहीं होगा और सात्विक हृदय हुए बिना साधना नहीं होगी। आम कच्चा है तो रस खट्टा है और पक गया तो मीठा है। जब तक आपका हृदय रजोगुण, तमोगुण से आवृत है, ढका हुआ है, तब तक भजन-पूजन में खटास है, मिठास का अनुभव नहीं होगा आपको और जहां मिठास का अनुभव नहीं हुआ, वहां रुचि नहीं होगी, वहां श्रद्धा नहीं होती। लेकिन भजन में स्वाद तो तभी मिलेगा जब हृदय सात्विक हो जाये।हृदय सात्विक जाये।हृदय सात्विक कैसे हो? उसके लिए शास्त्रों में बारंबार कहा है। आपका भोजन सात्विक हो। आपकी कमाई सात्विक हो और आपका संग सात्विक हो तथा संतों की सेवा हो रही हो तो धीरे-धीरे फिर आपका मन ईश्वर को पकड़ने लगेगा, समझने लगेगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।