पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, जो लोग ईश्वर को पाना चाहते हैं, उन्हें धर्म पालन करना जरूरी है, मर्यादा जरूरी है। और जो ईश्वर को नहीं मानते या पाना नहीं चाहते हैं उनके यहां धर्म नहीं रहता। जहां धर्म है वहीं ईश्वर हैं। जहां मर्यादा है वहीं ईश्वर है। धर्म और मर्यादा का पालन ईश्वर प्राप्ति के लिए आवश्यक है।
भगवान गणेश जी आदि देवता और प्रथम देवता है। सिंधु नाम के दानव का उद्धार करने के लिए भगवान ने मयूरेश विनायक के रूप में अवतार लिया और सिंधु नाम के दानव का उद्धार किया, द्वापर में गजानन अवतार लेकर के सिंदूरासुर का उद्धार करते हैं। आगे कलियुग के अन्त में भगवान का धूम्रकेतु अवतार होगा। भगवान बहुत से दुष्टों का संहार करेंगे, उसी के साथ सतयुग की स्थापना हो जायेगी।
त्रेता में भगवान गणपति का मयूरेश अवतार हुआ। गणपति भगवान के उत्सव के समय बहुत लोग आये हैं बधाइयां देने। भोलेनाथ ने बड़ा उत्सव मनाया, भोलेनाथ जी परम प्रसन्न हुए। इनके छः हाथ हैं, तीन नेत्र हैं। भगवान शंकर के भी तीन नेत्र हैं, अंबा पार्वती के भी तीन नेत्र हैं। गणपति के भी तीन नेत्र हैं। उसका संकेत यही है कि इनकी उपासना से तीसरा नेत्र जल्दी से खुल जाता है, और तीसरा नेत्र ज्ञान नेत्र कहलाता है। त्रिनेत्र और छः भुजा क्यों है?
तीनों देवताओं की दो-दो भुजा मिलायी गयी तो छः भुजा हो गई, ब्रह्मा विष्णु और महेश। छः भुजा वाले श्री मयूरेश भगवान हैं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा,(उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।