पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि पूजा अर्थात् भगवान् की वंदना, आभार, भजन ही पूजा है। भगवान् भागवत में कहते हैं, मेरी मूर्ति की स्थापना करके जो श्रद्धा से, मेरी पूजा करता है वह मुझे प्राप्त होता है। यह मेरी प्राप्ति का अति सरल मार्ग है। श्रीमद्भागवत महापुराण में पूजा का अर्थ- “पूज्यते मनसा इति पूजा “। जिस क्रिया के द्वारा ईश्वर की, लक्ष्मी की और सुख शांति की, प्राप्ति होती है, उसी को पूजा कहते हैं। सामान्य व्यक्ति के यहां भी कोई भिखारी आ जाय और बार-बार मांगे तथा कृपण उसे नहीं देना चाहता, पर बार-बार आग्रह करने पर गरीब व्यक्ति उसे कुछ न कुछ दे ही देता है। इसी प्रकार यदि मानव भगवान् की पूजा बार-बार करता रहे और दर्शनों की प्रार्थना करता रहे, तो प्रभु और शांति की प्राप्ति निश्चित है। ‘ पू ‘ का अर्थ ऐश्वर्य और ‘ जा ‘ का अर्थ जन्म, अर्थात् ऐश्वर्या का जन्म। श्री लक्ष्मी जी की कृपा के बाद ठाकुर जी के दर्शन अवश्य होंगे। भागवत में प्रह्लाद जी कहते हैं कि- ईश्वर विम्ब और जीव प्रतिबिम्ब है। बिम्ब की सेवा से प्रतिबिंब की सेवा स्वत्तः हो जायेगी। बिम्ब के बाल ठीक करने से शीशे के अंदर के प्रतिबिंब के बाल स्वतः ठीक होने लगेंगे। अतः नित्य-प्रति पूजा की आदत डालनी आवश्यक है। सनातन धर्म में विभिन्न मतावलम्बी पूजा तो करते-कराते ही हैं।सृष्टि के आरंभ में ध्रुव जी ने यमुना तट पर बालू रेत में नारायण का विग्रह रेखांकित करके नारायण की पूजा की और उन्हें पाया। श्री देवी भागवत महापुराण में सूरथ और समाधि वैश्य ने भगवती मां से सिद्धि पाई। रामायण में जानकी भगवती जी ने मां अम्बा के पूजन से श्री राम को पाया, तो भागवत में रुक्मणी जी ने मूर्ति पूजा से श्री कृष्ण को प्राप्त किया। भगवान् श्रीराम ने रामेश्वर में शिवजी की आराधना की। जिस घर में नित्य श्रद्धा पूर्वक नारायण की पूजा होती है, लक्ष्मी जी उस घर को कभी नहीं छोड़ती। जहां तुलसी, शालिग्राम की पूजा नहीं होती, वहां लक्ष्मी नहीं ठहरती” तुलसी न शिलार्चन। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना।