गोरखपुर। पितरों के प्रति आस्था निवेदित करने का पर्व पितृपक्ष 21 सितंबर से शुरू हो रहा है। यह छह अक्टूबर पितृ विसर्जन तक चलेगा। वहीं भाद्रपद मास की पूर्णिमा के दिन जिनके पितरों की मृत्यु हुई है वह 20 सितंबर को ही पितरों का श्राद्ध कर्म करेंगे। पंडित शरद चंद्र मिश्रा के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से 15 दिन पितृपक्ष मनाया जाता है। इन 15 दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी पुण्यतिथि पर श्राद्ध करते हैं। पितरों का ऋण श्राद्ध के माध्यम से चुकाया जाता है। वर्ष के किसी भी मास, तिथि में स्वर्गवासी हुए अपने पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है। उन्होंने बताया कि श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्ष भर तक प्रसन्न रहते हैं और कृपालु होते हैं। ज्योतिर्विद पंडित नरेंद्र उपाध्याय के अनुसार, सुबह स्नान के बाद पितरों का तर्पण करने के लिए सबसे पहले हाथ में कुश लेकर दोनों हाथों को जोड़कर पितरों का ध्यान करें और उन्हें अपनी पूजा स्वीकार करने के लिए आमंत्रित करें। पितरों को तर्पण में जल, तिल और फूल अर्पित करें। इसके साथ ही जिस दिन पितरों की मृत्यु हुई है, उस दिन उनके नाम से और अपनी श्रद्धा और यथाशक्ति के अनुसार भोजन बनवाकर ब्राह्मणों को दान करें। कौवा और श्वान में भी भोजन वितरित करें। ज्योतिषाचार्य मनीष मोहन के अनुसार जो श्राद्ध करने के अधिकारी हैं, उन्हें पूरे 15 दिनों तक और कर्म नहीं करना चाहिए। पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। प्रतिदिन स्नान के बाद तर्पण करके ही कुछ खाना पीना चाहिए। तेल-उबटन आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए। चौथ भरणी या भरणी पंचमी- गतवर्ष जिनकी मृत्यु हुई है, उनका श्राद्ध इस तिथि पर होता है। मातृनवमी-अपने पति के जीवन काल में मरने वाली स्त्री का श्राद्ध इस तिथि पर किया जाता है। घात चतुर्दशी-युद्ध में या किसी तरह मारे गए व्यक्तियों का श्राद्ध इस तिथि पर किया जाता है।
सर्व पैत्री अमावस्या-इस दिन सब पितरों का श्राद्ध होता है। मातामह-नाना का श्राद्ध आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को होता है। पंडित राकेश पांडेय के अनुसार आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या को पितृ विसर्जनी अमावस्या या महालया कहते हैं। जो व्यक्ति पितृ पक्ष के 15 दिनों तक श्राद्ध और तर्पण नहीं करते हैं, वे अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध तर्पण कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त जिन पितरों की तिथि ज्ञात नहीं, वे भी श्राद्ध-तर्पण अमावस्या को ही करते हैं। इस दिन सभी पितरों का विसर्जन होता है।