नई दिल्ली। गणों के अधिपति श्री गणेशजी प्रथम पूज्य हैं सर्वप्रथम उन्हीं की पूजा की जाती है, उनके बाद अन्य देवताओं की पूजा की जाती है। किसी भी कर्मकांड में श्रीगणेश की पूजा-आराधना सबसे पहले की जाती है क्योंकि गणेशजी विघ्नहर्ता हैं और आने वाले सभी विघ्नों को दूर कर देते हैं। श्रीगणेश लोक मंगल के देवता हैं, लोक मंगल उनका उद्देश्य है परंतु जहां भी अमंगल होता है, उसे दूर करने के लिए श्री गणेश अग्रणी रहते हैं। गणेश जी रिद्धि और सिद्धि के स्वामी हैं। इसलिए उनकी कृपा से संपदा और समृद्धि का कभी अभाव नहीं रहता है। श्री गणेशजी को दूर्वा और मोदक अत्यंत प्रिय है। श्रीगणेश को जरूर चढ़ाएं ये चीजें:- बौद्धिक ज्ञान के देवता कहे जाने वाले गणपति के आशीर्वाद से व्यक्ति का बौद्धिक विकास होता है। इसीलिए भक्त उनका आशीर्वाद पाने के लिए सच्चे मन और पूर्ण श्रद्धा से आराधना करते हैं। भक्त गणपति की पूजा करते समय छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखते हैं, ताकि उनसे कोई गलती ना हो जाएं। लेकिन अक्सर जानकारी न होने के अभाव में वे भगवान गणेशजी को ये कुछ चीजें चढ़ाना भूल जाते हैं। पहला मोदक का भोग और दूसरा दूर्वा (एक प्रकार की घास) और तीसरा घी। ये तीनों ही गणपति को बेहद प्रिय हैं। इसीलिए जो भी व्यक्ति पूरी आस्था से गणपति की पूजा में ये चीजें चढ़ाता है तो उस व्यक्ति को गणेशजी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। क्यों चढ़ाते हैं गणपति को प्रसाद में मोदक:- रिद्धि सिद्धि के देवता गणपति के पूजन में प्रसाद के रूप में खासतौर पर मोदक का भोग जरूर लगाया जाता है। कहा जाता है कि मोदक गणपति को बहुत पसंद है। लेकिन इसके पीछे पौराणिक मान्यताएं छिपी हुई हैं। पुराणों के अनुसार गणपति और परशुराम के बीच युद्ध चल रहा था, उस दौरान गणपति का एक दाँत टूट गया। इसके चलते उन्हें खाने में काफी परेशानी होने लगी। उनके कष्ट को देखते हुए कुछ ऐसे पकवान बनाए गए जिसे खाने में आसानी हो और उससे दाँतों में दर्द भी ना हो। उन्हीं पकवानों में से एक मोदक था। मोदक खाने में काफी मुलायम होता है। माना जाता है कि श्री गणेश को मोदक बहुत पसंद आया था और तभी से वो उनका पसंदीदा मिष्ठान बन गया था। इसलिए भक्त गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए मोदक का भोग लगाने लगे। हालांकि मोदक के विषय में कुछ पौराणिक धर्मशास्त्रों में भी जिक्र किया गया है। मोदक का अर्थ होता है ख़ुशी या आनंद। गणेश जी को खुशहाली और शुभ कार्यों का देव माना गया है इसलिए भी उन्हें मोदक चढ़ाया जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन क्यों निषेध है चंद्र दर्शन:- ऐसी माना जाता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए, नहीं तो व्यक्ति के ऊपर मिथ्या कलंक यानि बिना किसी वजह से व्यक्ति पर कोई झूठा आरोप लगता है। पुराणों के अनुसार एक बार भगवान कृष्ण ने भी गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन किया था, जिसकी वजह से उन्हें भी मिथ्या का शिकार होना पड़ा था। गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन को लेकर एक और पौराणिक मत है, जिसके अनुसार इस चतुर्थी के दिन ही भगवान गणेश ने चंद्रमा को श्राप दिया था। इस वजह से ही चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन को निषेध माना गया। अगर भूल से चन्द्र दर्शन हो जाए, तो इस दोष के निवारण के लिए नीचे लिखे मंत्र का 28, 54 या 108 बार जाप करें। श्रीमद्भागवत के दसवें स्कन्द के 57वें अध्याय का पाठ करने से भी चन्द्र दर्शन का दोष समाप्त हो जाता है। चन्द्र दर्शन दोष निवारण मन्त्र: सिंहःप्रसेनमवधीत्, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।। गणेश चतुर्थी 2021 शुभ मुहूर्त:- गणेश पूजन के लिए मध्याह्न मुहूर्त -दोपहर 11 बजकर 02 मिनट से लेकर 01 बजकर 32 मिनट तक, अवधि: 2 घंटे 29 मिनट। गणेश चतुर्थी व्रत व पूजन विधि: व्रती को चाहिए कि प्रातः स्नान करने के बाद सोने, तांबे, मिट्टी की गणेश प्रतिमा लें। चौकी में लाल आसन के ऊपर गणेश जी को विराजमान करें। गणेश जी को सिंदूर व दूर्वा अर्पित करके 21 लडडुओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू गणेश जी को अर्पित करके शेष लड्डू गरीबों या ब्राह्मणों को बांट दें। सांयकाल के समय गणेश जी का पूजन करना चाहिए। गणेश चतुर्थी की कथा, गणेश चालीसा व आरती पढ़ने के बाद अपनी दृष्टि को नीचे रखते हुए चन्द्रमा को अर्घ्य देना चाहिए। इस दिन गणेश जी के सिद्धिविनायक रूप की पूजा व व्रत किया जाता है। ध्यान रहे कि तुलसी के पत्ते (तुलसी पत्र) गणेश पूजा में इस्तेमाल नहीं हों। तुलसी को छोड़कर बाकी सब पत्र-पुष्प गणेश जी को प्रिय हैं। गणेश पूजन में गणेश जी की एक परिक्रमा करने का विधान है। मतान्तर से गणेश जी की तीन परिक्रमा भी की जाती है।