पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भगवान् श्री राम चारों भाई गुरुकुल में विद्या अध्ययन करने गये, थोड़े दिनों में सब कुछ अध्ययन कर लिया। प्रभु श्रीराम प्रातःकाल उठते हैं, माता-पिता और गुरु के चरणों में घुटने टेक कर माथा चरणों में रख देते हैं, साष्टांग प्रणाम करते हैं। “प्रातकाल उठ कै रघुनाथा। मातु-पिता, गुरु नावहिं माथा।।” यह संकेत है अगर प्रातःकाल उठकर पुत्र माता-पिता और गुरु को प्रणाम करता है, पुत्रवधू प्रातः काल उठकर सास-ससुर और पति के चरणों में प्रणाम करती है, रात्रि में पिता की सम्पूर्ण सेवा एवं चरण सेवा करके यदि पुत्र सोता है और सासू की सम्पूर्ण सेवा एवं चरण सेवा में करके यदि पुत्र बधु रात में सोती है, तो वह घर स्वर्ग हो जाता है। उस घर में लड़ाई नहीं हुआ करती है। ध्यान में लो! जो इस बात को अपने जीवन में उतारेंगे, उनके जीवन में निश्चय ही सुख समृद्धि आयेगी। “जहां सुमति तहँ संपत्ति नाना। जहां कुमति तहां बिपति निधाना। अगर आप रामायण की बात मानते रहेंगे, विश्वास कर लीजिए, आपका घर स्वर्ग हो जायेगा। स्वर्ग का सुख यही मिलेगा। पुत्र प्रातःकाल उठके माता, पिता, गुरु एवं बड़ों को प्रणाम करें और प्रणाम भी ऐसे नहीं कि हाथ से पैर छू लिये। सिर रखके प्रणाम करो। अभिमान को गलित करना है, बड़ों का पूजन करो। श्रीमनुजी महाराज ने मनुस्मृति में लिखा है- “अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।” जो व्यक्ति बड़ों को प्रणाम करता है, घर के बड़ों की सेवा करता है, उसकी चार चीजें हमेशा बढ़ती हैं। आयु, विद्या, यश और बल ये चार चीजें बढ़ती है। जो बड़ों को प्रणाम करते हैं उनकी आयु लम्बी होती है। उनकी बुद्धि निर्मल होती है। उनका यश संसार में फैलता है। उनका शारीरिक बल भी बढ़ता है। बड़ों को जब हम प्रणाम करते हैं तो बड़ों के अंदर से ऐसा आशीर्वाद निकलता है, वह पुत्र आदि नहीं समझ पाते हैं। पुत्र जब पिता के चरणों में प्रणाम करता है, मां के चरणों में जब माथा रखता है, तो माता-पिता का रोम-रोम कैसे आशीर्वाद दे रहा होता है, इस बात को पुत्र समझ नहीं पाता। अगर समझ ले तो प्रणाम से कभी नहीं चूकेगा। छोटा भाई, बड़े भाई को पिता की दृष्टि से देखें और बड़ा भाई छोटे भाई को पुत्र की दृष्टि से देखे। भगवान् श्री राम ने अपने चरित्र में यह सब दिखाया है। रामायण का मतलब आचार संहिता। रामायण का मतलब है मार्गदर्शन। आप करके देखिए, रामायण की बात को मान के देखिए। हम रामायण को तो मानते हैं, लेकिन रामायण की नहीं मानते। रामायण को मानते हैं पर रामायण की बात नहीं मानते। गीता को मानते हैं, गीता की बात नहीं मानते। हम भगवान् को मानते हैं पर भगवान् का आदेश नहीं मानते। जबकि शास्त्र यह कहते हैं कि आप भगवान् को भले ही न मानो पर भगवान् का आदेश मान लो। रामायण को भले न मानो पर रामायण का आदेश मान लो, आपका जीवन धन्य, धन्य हो जायेगा। प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा। कोई भी कार्य करने से पहले भगवान् श्री राम, महाराज श्री दशरथ से पूछ लेते हैं- पिताजी यह कार्य करना है, आपकी क्या आज्ञा है? आयसु मागि करहिं पुर काजा। देखि चरित मन हरसहिं राजा। पिता से पूछ कर काम करोगे आप। हानि-लाभ की जिम्मेदारी पिता पर होगी, आप निश्चिंत रहोगे। जैसा शास्त्र कहते हैं,करके देखो। निश्चित लाभ होगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।