पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि अयोध्या का एक नाम अवध भी है और अवध शब्द का सांकेतिक अर्थ होता है, चौरासी लाख शरीरों के बाद शरीरों की जो अंतिम अवधि है- मनुष्य शरीर- उसी का नाम अवध है। हमारा आपका शरीर भी अवध है। जहां किसी का वध न होता हो उसे अवध कहते हैं। धर्म का मार्ग किसी को मारने का आदेश नहीं देता। धर्म सभी को जीने का आदेश देता है। सबको जीने का समय दो, अवसर दो। सनातन धर्म में किसी को भी मारना पाप है।जियो और जीने दो। व्यक्ति अपनी इंद्रियों के स्वाद के लिये निरपराधी जानवरों को मारता है। उनसे पूछा जाय भाई इन जीवों ने आपका क्या किया? फिर क्या वह मरना चाहते हैं? क्या मांस के बिना आप जीवित नहीं रह सकते? फिर आप जानवरों को क्यों मारते हैं? क्षणिक सुख के लिए व्यक्ति बड़े से बड़े बाप कर लेता है और फिर उसका फल दुःख भोगता है। “अवध” माने, मनुष्य का शरीर। राम ब्रह्म हैं।भगवती जानकी भक्ति हैं, लक्ष्मण बैराग्य हैं। जिस शरीर से ज्ञान और भक्ति निकल जाये वह शरीर हमेशा मृतक समान हो जाता है। व्यक्ति के शरीर की पूजा नहीं होती। बल्कि उसके गुणों की पूजा हुआ करती है। आप अपने जीवन में ईश्वर को जितना प्रवेश कराते जायेंगे- आपका जीवन उतना सुंदर और भावुक बनता चला जायेगा। आपके ट्रांजिस्टर में अनेक स्टेशन होते हैं- जिसमें आप सुई लगा देते हैं, उसी का समाचार आने लगता है। इसी तरह शरीर के अंदर भी बहुत सारे स्टेशन हैं- काम के, क्रोध के, लोभ के, ज्ञान, भक्ति, वैराग्य के- शरीर में भी स्टेशन हैं। हम जहां सुई लगा देते हैं वहां के समाचार आने लगते हैं। जब हम काम में मन लगाते हैं, तो वासना के परमाणु हमारे अंदर प्रवेश करने लगते हैं। जब हम क्रोध में मन लगाते हैं, तो शत्रु के परमाणु हमारे अंदर प्रवेश करने लगते हैं। लोभ में मन लगाते हैं, तो धन के परमाणु हमारे अंदर प्रवेश करते हैं और जब भक्ति, ज्ञान, वैराग्य में मन लगाते हैं तो चेतना के परमाणु हमारे अंदर प्रवेश करते हैं। हमारा जीवन चैतन्य होने लगता है और ज्यों-ज्यों जीवन में चेतना बढ़ती जायेगी, त्यों-त्यों आपका जीवन सात्विक और सुंदर, आकर्षक बनता चला जायेगा। चैतन्य महाप्रभु जब संकीर्तन करते थे तो हाथी, शेर, सर्प उनके साथ कीर्तन करने लगते थे। दुष्ट प्राणी भी शिष्ट के पास पहुंचकर शिष्ट बन जाता है। महर्षि पतंजलि योग दर्शन में लिखते हैं”अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्संनिधौ वैरत्यागः।।” जो व्यक्ति अहिंसक होता है उसके सामने पहुंचकर हिंसक भी हिंसक हो जाता है। उसके अहिंसा के परमाणुओं का प्रभाव उस पर पड़ जाता है। हर किसी को अपने जीवन में कोई नियम रखना चाहिए। एक नियम बनाओ अपनी जिंदगी का। कौशल्या माँ का एक नियम था कि जब तक हम अपने कुलदेवता को स्नान करा के और उनको भोग नहीं लगा देंगे, तब तक हम पानी नहीं पियेंगे। हम आपको भी अपने जीवन में प्रभु भक्ति आराधना से संबंधित कोई नियम रखना चाहिए। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।