हिमाचल प्रदेश। हिंदू धर्म में वर्ष के सोलह दिन पितृ या पूर्वजों को समर्पित हैं। इसे पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष कहते हैं। इसे महालय के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन मास की कृष्ण पक्ष को पितृ पक्ष के रूप में मनाया जाता है। पितृ पक्ष का आरंभ भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से ही हो जाता है। इस बार पितृ पक्ष या महालय 20 सितंबर से 6 अक्टूबर तक रहेगा। भारतीय शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि पितृ पितृपक्ष में पृथ्वी पर आते हैं और 15 दिन तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ अपने परिजनों के आसपास रहते हैं। इसलिए इन दिनों कोई भी ऐसा काम नहीं करें, जिससे पितृगण नाराज हों। आचार्य राजपाल उपमन्यु ने बताया कि श्राद्ध सदैव दोपहर के समय ही करें। प्रात: एवं सायंकाल के समय श्राद्ध निषेध कहा गया है। पितरों को भोजन सामग्री देने के लिए मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग किया जाए तो अच्छा है। केले के पत्ते या लकड़ी के बर्तन का भी प्रयोग किया जा सकता है। पूर्णिमा का श्राद्ध 20 सितंबर, प्रतिपदा (पड़वा) का श्राद्ध 21 सितंबर, द्वितीया (दोज) का श्राद्ध 22 सितंबर, तृतीया (तीज) का श्राद्ध 23 सितंबर, चतुर्थी का श्राद्ध 24 सितंबर, पंचमी का श्राद्ध 25/26 सितंबर, षष्टी का श्राद्ध 27 सितंबर, सप्तमी का श्राद्ध 28 सितंबर, अष्टमी का श्राद्ध 29 सितंबर, नवमी का श्राद्ध 30 सितंबर, दशमी का श्राद्ध 1 अक्तूबर, एकादशी का श्राद्ध 2 अक्टूबर, द्वादशी का श्राद्ध 3 अक्टूबर, त्रयोदशी का श्राद्ध 4 अक्तूबर, चतुर्दशी का श्राद्ध 5 अक्टूबर, पितृविसर्जनी अमावस्या/अमावस्या का श्राद्ध 6 अक्टूबर।