पुष्कर/राजस्थान। श्री शिवमहापुराण माहात्म्य् के प्रारंभ में शौनकादि ॠषि सूत जी से निवेदन करते हैं। ऐसी कथा सुनाईये जिससे मन के दोषों की निवृत्ति हो। मन के दोषों के कारण ही पाप होते हैं और पाप का फल है दुःख। पाप-पुण्य बीज हैं, सुख और दुःख उसका फल है। शरीर में रोग होना, पति-पत्नी का अनुकूल न होना, हमारे किसी पाप का फल है। बिना पाप के दुःख फल नहीं मिल सकता। पुण्य बिना सुख होय नहीं होय न दुःख बिन पाप। काहुहि दोष न दीजिए समुझि आपने आप।। दूसरा प्रश्न किया- हमारे जीवन से आसुरी भाव नष्ट हों और दैवी भाव आवै, इसके सरल साधन हों तो बताइए। श्री सूत जी कहते हैं सभी शास्त्रों के मूल शिव हैं। समस्त समस्याओं का समाधान भगवान शिव की उपासना से होती है और जीवन में सारी उपलब्धियां भी श्री शिव की उपासना से होती है। सबके मूल में शिव हैं।श्री शिव पुराण भी शिव ने कहा है। सबसे पहले शिव ने नंदीश्वर से कहा, नंदीश्वर ने सनत- कुमार जी से कहा, श्री सनत- कुमार जी ने शम्याप्राश में भगवान व्यास को सुनाया, व्यास जी ने सूत जी को और सूत जी ने नैमिषारण्य में शौनकादि अठ्ठासीहजार ऋषि-मुनियों को सुनाया, इस परम्परा से श्री शिव- महापुराण की कथा हम आप तक आ गयी। लेकिन इसके मूल में भी भगवान शिव ही है, ऐसे देखें तो पूरी सृष्टि के मूल में शिव ही है। सभी शास्त्रों, सभी ग्रंथों के मूल में भी शिव हैं। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि कल की कथा में श्री शिव महापुराण के विद्येश्वर संहिता की कथा होगी, जिसमें बेलपत्र और शिवपूजा आदि की विधि एवं महिमा का गान किया जायेगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।