पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्या मोरारी बापू ने कहा कि भरत मिलाप जीव और शिव की एकता है। भागवत रासलीला में गोपी कृष्ण प्रेम की मूर्ति है और रामायण में भरत-राम प्रेम की मूर्ति है। धर्माचरण का आधार है श्रीभरत। यदि संसार को भरत चरित्र न मिलता तो प्रेम और तपस्या की परिभाषा अधूरी ही रहती। रामराज्य- यदि भारत अपनी तपस्या, अपने प्रेम, अपनी त्याग, अपने समर्पण के द्वारा रामराज्य की आधारशिला न रखते तो रामराज्य हो नहीं सकता था। भरत छत्र- भगवान् श्रीराम ने कहा- हनुमान जब तक भारत का यह छत्र मेरे ऊपर रहेगा तब तक इस गद्दी पर मैं बैठा रहूंगा। भरत के प्रेम का, भरत के त्याग का, भरत के समर्पण का छत्र है मेरे माथे पर, इसीलिये आज मैं इस राजगद्दी पर बैठा हूं और जब तक यह छत्र रहेगा, तब तक रामराज्य रहेगा। रामराज्य, प्रेम राज्य है और भरत- राम प्रेम की मूर्ति। दुनिया से प्रेम करने जैसा कुछ भी नहीं है संसार तो नाशवान है। किसी से भी प्रेम करोगे तो वह पहले मरेगा या तो उसके पहले तुम मरोगे। इसलिए दुःख ही दुःख है। इसलिए प्रेम करो! जो नित्य हैं नारायण, नित्य हैं जगन्नाथ। इसलिये प्रीत की धारा प्रभु की और बहनी चाहिये इसी का नाम भक्ति है। भागवत कथा आसव है। जिसको पीने से नशा होता है उसको आसव कहते हैं और नशे में तो पतन होता है। लेकिन इस भागवत रूपी आसव का नशा जीवन को उन्नति करने वाला, धन्य करने वाला है। यह नशा बेहोशी को दूर करके व्यक्ति को पूर्ण होश में, पूर्ण जागृति में ले जाता है। मेरे ठाकुर की अदा निराली है। गिराता है उठाने से पहले कसौटी तो करता है, परीक्षा तो करता है, लेकिन एक बार जिसको उठा लेता है, उसको जिंदगी में कभी गिरना नहीं पड़ता। क्योंकि भगवान की प्रतिज्ञा है; कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति।। हे अर्जुन! जान ले तू! मेरे भक्त का कभी पतन नहीं होता, उसको भवसागर में जाना नहीं पड़ता। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्रीदिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।