राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि सर्वं देवीमयं जगत् देवी मां का मतलब है, जो शक्ति के रूप से सबमें व्याप्त हैं। जैसे हम कहते हैं- हमें बुखार आ गया, तो कोई बद्रीनाथ से चलकर नहीं आया। हमारे अंदर से ही आया, शुभ-अशुभ, स्वास्थ्य-अस्वास्थ्य, सब भीतर विद्यमान है। थोड़ी सावधानी हुई स्वास्थ्य मिल गया। थोड़ी असावधानी हुई, बात पित्त बिगड़ जाता है तो बुखार प्रगट हो जाता है। हमारा आपका हृदय ही उद्गम स्थल है। थोड़ी असावधानी किया, कुसंग किया, तो सारे दुर्गुण और विकार हृदय में ही उत्पन्न होते हैं। बाद में बाहर भी दिखाई देते हैं। थोड़ी सावधानी किया- सत्संग, स्वाध्याय, चिंतन, मनन, ध्यान किया, मां जगदंबा शिव- शक्ति भी हृदय में ही प्रकट होते हैं और बाहर भी दर्शन देते हैं। ऐसे भगवती जब प्रगट होती हैं, भक्तों की सद्भावनाओं से ही प्रकट होती है। वृक्ष धरती से उखड़ कर गिर पड़ा और बोला हे धरती तुमने जल और भोजन नहीं दिया इसलिए उखड़ करके गिर पड़ा हूँ। हंसती हुई धरती मां ने कहा तेरी जड़ें खोखली हो गई थी, तुम्हें जल और भोजन लेना नहीं आया, शक्ति लेना नहीं आया। किसी भी बालक का पतन हुआ है, उसने अपने भविष्य को नहीं प्राप्त किया, ये बालक की कमी है, मां की कमी नहीं है। क्योंकि मां ने अपनी कृपा की सारे प्याले उसकी जिंदगी में उड़ेल दिये थे।
मां को उलाहना मत दो, आपके कर्म और धर्म आपके साथ हैं। यही सफलता और असफलता में कारण है। मां को दोष मत दो, मां ने शक्ति प्रदान किया है। देखने की, सुनने की, सब कुछ करने की, लेकिन शक्ति प्राप्त कर आपने अच्छा कर्म किया या बुरा कर्म किया, ये आपके ऊपर निर्भर है। ईश्वर शक्ति प्रदान करते हैं, सूर्य का काम प्रकाश देना है। अब उस प्रकाश में हम किसी की बुराई देखते हैं या अच्छाई देखते हैं ये हमारे ऊपर निर्भर है। ईश्वर भक्ति के साथ-साथ मनुष्य के जीवन में कर्म की प्रधान है। कर्म शुद्धि और ईश्वर की आराधना से जीवन सफल होता है। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान
(वृद्धाश्रम) का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में चातुर्मास के पावन अवसर पर, श्री मार्कंडेय महापुराण कथा के नवम दिवस श्री दुर्गा सप्तशती में मध्यम चरित्र और उत्तर चरित्र का गान किया गया। कल की कथा में श्रीपद्ममहापुराण का शुभारंभ होगा।