पुष्कर/राजस्थान। संसार में मानव तो बहुत मिलेंगे, लेकिन मानवता दुर्लभ होती जा रही है और देखा जाये तो जिनमें मानवता न हो उनको मानव भी कैसे कहें, चीनी अगर मीठी न हो तो चीनी किस काम की, नमक अगर खारा नहीं है तो नमक किस काम का, उसी प्रकार मानवता न हो तो मानव किस काम का, आज मनुष्य की जिंदगी जी करके पृथ्वी पर से विदा लेते नजर नहीं आते। भगवान् बुद्ध ने कहा तुम धर्म के नाम पर यज्ञ में पशुओं के हिंसा करते हो, अरे! अपनी पशुता को खत्म करो, पशु को नहीं। पशु को क्यों मारते हो, अपने भीतर की पशुता को खत्म करो, इसको मारो, यज्ञ इसलिये है। भीति से भीतर के पशु को नियंत्रित करो और प्रीति के द्वारा भीतर के इंसान को जगाओ। इंसानियत को, मानवता को जगाओ। यह काम है धर्म का। इस वक्त इंसान अधूरा है क्योंकि भीतर पशु जी रहा है और वह पशु कभी-कभी प्रगट हो जाता है। जो आदमी हिंसा करता है, हुल्लड़ करता है, धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर, संप्रदाय के नाम पर हिंसाएं होती हैं। भय तीन प्रकार का होता है। एक भय है परमात्मा का, धर्म का। क्योंकि पाप किया तो नरक में जायेंगे। भगवान् नाराज हो जायेंगे, हमारी दुर्गति होगी। दूसरा भय है समाज का, सोसायटी का, समाज में रहना है तो समाज का भय। तीसरा भय है जो न धर्म को मानते हैं, न परमात्मा को मानते हैं, न समाज को मानते हैं। ऐसे लोगों के लिए राजा हाथ में दंड धारण करता है, उनको राजा के सिपाही पकड़कर दंड देते हैं। तो जो दुष्ट प्रकृति के लोग होते हैं वे पुलिस के भय से सही रास्ते पर चलते हैं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन श्री दिव्य घनश्याम धाम गोवर्धन से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।