रासलीला की कथा का श्रवण करने से प्राप्त होती है भगवान की भक्ति: दिव्य मोरारी बापू
राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि महारास- श्रीमद्भागवत महापुराण को भगवान का वांग्मय स्वरूप बताया गया है। वेदों में लिखा है- द्वादशांगो वै पुरुषः भगवान द्वादश अंगों वाले हैं और श्रीमद् भागवत महापुराण में द्वादश स्कंध है। एक-एक स्कंध को भगवान के विग्रह का एक- एक अंग बताया गया है। जिसमें दशम् स्कंध भगवान का हृदय स्वरूप बताया गया है। और दशम् स्कंध में रास पंचाध्यायी भगवान के श्रीमद्भागवत महापुराण विग्रह के पंचप्राण बताया गया है। रास शब्द का अर्थ होता है- ।रसानां समूहा रासः। यहां आनंद ढेर-ढेर प्रगट हो जाय उसे रास कहते हैं। जैसे लोग कहते हैं- कथा में बड़ा रस आया, कीर्तन में बड़ा रस आया, भजन में बड़ा रस आया, ध्यान में बड़ा रस आया। यहां रस का अर्थ होता है आनंद। जहां आनंद ढेर-ढेर हो जाय उसी को रास कहते हैं। जीव और ब्रह्म के मिलन को रास कहते हैं। गोपियां बहुत दिनों दिन से प्रतीक्षा कर रही थी प्रभु से मिलन की। जब भगवान ने चीर हरण किया था, वचन दिया था कि एक वर्ष बाद हम महारास करेंगे। भागवत में लिखा है- देवी-देवता विमान पर बैठकर रासलीला देख रहे हैं। समय-समय पर पुष्प वर्षा भी कर रहे हैं। जैसे गोवर्धन धारण करके भगवान इंद्र का मान मर्दन किये, उसी तरह रासलीला करके कामदेव का मान मर्दन किये। श्रीधर स्वामी लिखते हैं- कंदर्प दर्प ह। कंदर्प यानी काम के दर्प यानी अभिमान को नष्ट करने के लिए- जयति श्री पतिर्नाथ गोपी मंडलमंडना, कामदेव के अभिमान का मर्दन किया। रासलीला की कथा का श्रवण करने से, पाठ करने से अथवा भगवान के रास का ध्यान करने से भगवान की भक्ति प्राप्त होती है। और संसार के दोषों से निवृत्ति होती है। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम एवं वात्सल्यधाम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री- श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में, पितृपक्ष के अवसर पर- पाक्षिक भागवत के अष्टम दिवस रासलीला की कथा का गान किया गया। कल की कथा में मथुरालीला का गान किया जायेगा।