पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्री कृष्ण- ‘अदण्डमन्येषां परं दानम्’ अपनी ओर से किसी निर्दोष जीव को कष्ट न पहुंचाना सबसे बड़ा दान है। यद्यपि मंदिरों में भंडारे, पुजारियों को दक्षिणा और अनाथों की सेवा अपनी जगह दान है, परंतु यह सब करने वाला यदि हिंसा कर रहा है, जीवों की हत्या स्वयं कर रहा है या करवा रहा है तो उसके द्वारा किया गया अर्थ दान महत्वहीन है। अतः शास्त्रों में अभय दान को बड़ा दान माना है। एक अन्य व्यक्ति अर्थ के दान में समर्थ नहीं है परंतु प्राणी मात्र के लिए उसके हृदय में दया है, और हर आत्मा में ईश्वर का स्वरूप देखता है, न स्वयं भय खाता है न दूसरों को भय देता है तो यह सेवा सर्वोच्च दान है। अभय दान सर्वोच्च दान है। इस दान का आध्यात्मिक पक्ष यही है कि- जियो और जीने दो। दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान। तुलसी दया न छांड़िए जो लौ घट में प्रान। श्रीमद्भागवत महापुराण के चतुर्थ स्कंध में देवर्षि श्री नारद जी महाराज कहते हैं कि अगर व्यक्ति तीन काम कर ले तो उससे परमात्मा प्रसन्न हो जाते हैं। 1- प्राणी मात्र पर दया, 2- जो कुछ प्रारब्ध और उसके अनुरूप किये गये अपने वर्तमान कर्मों से प्राप्त हुआ है उसमें संतोष। 3- और समस्त इंद्रियों में संयम। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।