श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करने से मिलती है शांति: दिव्य मोरारी बापू
राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ श्रीमद्भगवद्गीता माहात्म्या श्रीमद्भागवद्गीता- भगवान श्री कृष्ण का हृदय है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- गीता मे हृदयं पार्थ, गीता मेरा हृदय है। श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय, श्रवण, ज्ञाननेत्र को खोल देता है। भाग्यशाली है वो लोग जिनके हृदय में श्रीमद्भगवद्गीता के प्रति प्रेम है। इसका नाम गीता इसलिए पड़ा क्योंकि यह भगवान श्री कृष्ण का गीत है। गीता गीत को कहते हैं। हृदय के उदगारों को, जिसे गाया जाय, उसे गीता कहते हैं। जैसे- “गोपीगीत” यह गोपियों का गीत है, इसी प्रकार श्रीमद्भगवद्गीता भगवानश्री कृष्ण का गीत है। वराह पुराण में भगवान कहते हैं- “गीताश्रयऽहं तिष्ठामि” मैं गीता के आश्रित होकर रहता हूं। “गीता मे चोत्तमं गृहं ” गीता मेरा घर है। “गीताज्ञानमुपाश्रित्य” और गीता ज्ञान का सहारा लेकर मैं तीनों लोक का पालन करता हूं। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- सूर्य का जो प्रकाश है, वह गीताज्ञान का ही प्रकाश है। सृष्टि के प्रारंभ में गीता मैंने सूर्य को सुनाई थी। जिस दिन सूर्य में गीता का ज्ञान नहीं रह जायेगा।
उस दिन सूर्य एक राहूपिंड की तरह रह जायेगा, भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, गीता जो दूसरों को सुनाते हैं, सुनते हैं, पढ़ते हैं, उनसे प्यारा मेरा दुनियां में कोई नहीं हो सकता। अगर कोई व्यक्ति पढ़ नहीं सकते तो श्रद्धावान होकर सुन भी लेता है तो पुण्य लोकों में जाकर निवास करेगा। “श्रद्धावाननसूयश्च श्रृणुयाऽदपियोन्नरः” जो भी सुनेगा, मुक्त होगा, पुण्य लोकों में जाकर निवास करेगा।श्रीमद्भगवद्गीता के प्रथम अध्याय में- महाभारत युद्ध में कौरवों की तरफ अपने ही परिजनों को खड़ा देखकर अर्जुन को मोह उत्पन्न होता है और वह अपने कर्तव्य से विमुख होने लगता है। इस कथा का वर्णन किया गया है। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम एवं वात्सल्यधाम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में”श्री दिव्य चातुर्मास महामहोत्सव” के अवसर पर श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ के प्रथम दिवस- श्रीमद्भगवद्गीता माहात्मा एवं प्रथम अध्याय की कथा का गान किया गया। कल द्वितीय अध्याय की कथा का गान किया जायेगा।