राजस्थान। श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान् श्रीराधाकृष्ण का ही स्वरूप है। भागवत में और भगवान् में रंचमात्र भी अंतर नहीं है। भगवान् की शब्दमयी मूर्ति भागवत महापुराण है। भगवान की आठ प्रकार की मूर्तियों का वर्णन शास्त्रों में है। पाषाण की, काष्ठ की, लोह-सुवर्णादि धातु की, लेप्या दीवार में लिखित, चंदनादि लेप की, लेख्या चित्ररूपा, सैकती, मृण्मयी, मनोमयी और मणिमयी ये मूर्तियां आठ प्रकार की है। भागवत भगवान की शब्दमयी मूर्ति है। शब्दमयी का अर्थ होता है शब्दों से निर्मित मूर्ति। यह मूर्ति भगवान व्यास ने बनाया। किसी ने प्राणप्रतिष्ठा नहीं किया, भगवान स्वयं आकरके प्रतिष्ठित हो गये। जब हम भगवान की कथा श्रद्धा पूर्वक सुनते हैं तो कानों के माध्यम से भगवान हमारे भीतर प्रवेश कर जाते हैं और जीवन मंगलमय बन जाता है। द्वापर के अंत और कलियुग के प्रारंभ में अट्ठासीहजार महात्माओं ने नैमिषारण्य में दीर्घकालीन कथा सत्र का आयोजन किया। क्योंकि जितनी देर हम सत्संग में होते हैं पाप से, बुराइयों से, अनाचार से, बचे रहते हैं। जगत के व्यवहार में असत्य भाषण, निंदा-स्तुति रूप पाप बनता रहता है। हम बचते हैं जितनी देर सो जाते हैं अथवा सत्संग में रहते हैं। जगत के व्यवहार के बिना काम नहीं चलेगा, जैसी हवा चल रही हो वैसा चलना पड़ता है। उपाय क्या है, जितना अधिक से अधिक संभव हो सत्संग में रहें। जितना समय हमारा सत्संग में वीतता है उतना सार्थक और कल्याण प्रद है। जितनी देर हम सत्संग करते हैं उतनी देर का समय धन्य हो गया।
पश्चिमी सभ्यता की आंधी चल रही है। कलयुग के दोष और मानव के अपने भी जन्मांतर के संस्कार होते हैं। सत्संग का आश्रय होगा तो ही हम दोषों से बच पायेंगे।
प्रश्न- सत्संग किसे कहते हैं, उत्तर- सत् का अर्थ होता है परमात्मा, ईश्वर, और संग का अर्थ होता है सन्निधि। जो साधन हमें ईश्वर से जोड़ते हैं उसे सत्संग कहते हैं। भगवान का ध्यान, नाम जप, पूजा, कीर्तन, भगवत् कथा, स्मरण, यह सब सत्संग है। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम एवं वात्सल्यधाम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में, पितृपक्ष के पावन अवसर पर पाक्षिक भागवत का शुभारंभ किया गया। श्रीमद्भागवत के महात्म्य का गान किया गया। कल की कथा में विदुर चरित्र की कथा का गान किया जायेगा।