पुष्कर/राजस्थान। श्री दिव्य माेरारी बापू ने कहा कि सत्य ईश्वर का स्वरूप है, असत्य के बराबर कोई पाप नहीं है। सत्य बोलना भी यज्ञ है। सतोगुण के बढ़ने से नींद कम आती है लेकिन ईश्वर का स्मरण चिंतन आसान हो जाता है। सत्संग ईश्वर-कृपा से मिलता है, किन्तु कुसंग में न पड़ना तुम्हारे हाथ में है। सत्संग करो! तुम संत थे, अतः तुम्हें संत मिलेंगे। सत्संग न हो तो कोई हर्ज नहीं। किंतु बुरे लोगों का संग कभी नहीं करना। बुरे लोगों का संग छोड़ना तुम्हारे हाथ की बात है। सत्संग से मनुष्य को अपनी भूलों का ज्ञान होता है। सदाचारी पत्र माता-पिता को सद्गति प्रदान करता है। सदा यही सोचो कि भगवान् कृष्ण तुम्हारे साथ हैं। संत मिले तो उनसे अपनी लौकिक बात नहीं पूछना। संत-समागम तथा सदाचार से सतोगुण बढ़ता है। संत हुए बिना संत को नहीं पहचाना जा सकेगा। संध्या समय लक्ष्मी जी घर आती हैं, उस समय घर बंद हो तो ‘जय श्री कृष्ण’ कहकर लक्ष्मी जी भी लौट जाती है। सबका आशीर्वाद लोगे तो भगवान् तुम्हारे घर आएंगे। किसी की दुःशीष मत लो। सबका कल्याण हो-विवेक से ऐसा बोलना ही सत्य है, इसी प्रकार बोलो। सत्ता मिलने से मनुष्य पागल हो जाता है। सत्ता मिलने के बाद भी अगर विनम्रता बनी रहे, बदले की भावना न उत्पन्न हो करके, दूसरों के लिए अपने सुखों का बलिदान देने की भावना बनी रहे तो मानना ईश्वर की बहुत बड़ी कृपा है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।