सत्संग से श्रद्धा, प्रेम और भक्ति की होती है प्राप्ति: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ईश्वर को प्राप्त करने के नौ रास्ते हैं। भक्ति के नौ रास्ते हैं। जैसे वृंदावन जाना हो, तो हमको जहां से सुविधा हो वहीं से चल दें। श्री धाम वृंदावन पहुंच जायेंगे, कोई जरूरी नहीं है कि एक ही जगह से चलें। जिसको जहां से सुविधा हो वहां से चलें। ईश्वर को पाने के नौ रास्ते हैं। इसी को नवधा भक्ति के नाम से जानते हैं। कौन कौन से रास्ते हैं? पहला रास्ता कौन है? ।।प्रथम भगति संतन कर संगा।। पहली भक्ति यह है कि हमको संत प्रिय लगने लगे। मीठे लगें, जो भगवान के भक्त हैं। गोस्वामी श्री तुलसीदास जी महाराज ने घोषणा कर दी। ” नाते नेह राम के मनियत, सुहृद सुसेव्य जहांलौ।। ” ।।जौ मोहि राम लागते मीठे।। मीरा ने कहा मेरा कोई भाई, बहन, बंधु नहीं । मेरा कोई नाते- रिश्तेदार नहीं। मेरा रिश्तेदार वो है, जो मेरे गिरधर का भक्त है। जो मेरे गिरधर से नाता जोड़ चुका है, वह मेरा बहन-भाई है। वह मेरा बंधु है। वह मेरा पिता और मेरी मां है। ।।प्रथम भगति संतन कर संगा।। किसी ने पूछा तेरा धनमाल कितना है, आपको दिन में आपके जो ईष्ट मित्र मिलते हैं, तो सब पूछते हैं आपको किसी ने पूछा तेरा धनमाल कितना है, किसी ने पूछा तेरा परिवार से स्नेह कितना है, पर यह किसी ने न पूछा कि तेरा भगवान से स्नेह कितना है। सत्संग से भगवान में श्रद्धा, प्रेम और भक्ति की क्रमशः प्राप्ति हो जाती है। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा।। दूसरी भक्ति क्या है, भगवान की कथा सुनते रहो, जहां कहीं कथा हो सुनते रहो। कथा से विरति नहीं कथा में रति। गुरु पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान। शास्त्रों में लिखा है कि जो व्यक्ति गुरु को मनुष्य मानता है, उसे कभी सिद्धि नहीं होती। परमात्मा ही गुरु बनके आते हैं, ज्ञान देने के लिये। यह बुद्धि चाहिए। चौथी भक्ति क्या है? भगवान की कथा सुनाओ, कीर्तन करो, कीर्तन में डूब जाओ। पांचवी भक्ति क्या है? मंत्र जाप मम दृढ़ विश्वासा। पंचम भजन सो वेद प्रकासा।। मंत्र का जप करते रहो हमेशा और प्रभु के ऊपर पूर्ण विश्वास रखो। मंत्र का जप छूटना नहीं चाहिए। छठीं भक्ति क्या है? इंद्रियों को गलत रास्ते में न जाने देना। बल्कि जाप, पाठ, पूजा, ध्यान में मन को लगाना। धीरे-धीरे मन को परमात्मा की तरफ लगाना। सातवीं भक्ति कौन सी है? सातवीं भक्ति सारे जगत में भगवान को देखना। आठवीं भक्ति क्या है? जथा लाभ संतोष। ईमानदारी की कमाई से जो भी मिल जाय वह करोड़ों के बराबर है। दूसरे की कोठियां, दूसरे की कारें, देखकर यह मत सोचो कि हम भी दो नंबर से कमा कर धनवान बन जायें। इमानदारी से व्यापार करो। जो मिल जाय, उसमें संतोष रखो और ईश्वर का भजन करो।नवमी भक्ति क्या है? “नवम सरल सब सन छल हीना।” निष्कपट व्यवहार सबसे करो। वैष्णव उसी को कहते हैं, जिसमें कपट न हो। सब में भगवान को देखना।” मम भरोस”। परमात्मा पर विश्वास रखो। “हिय हरस न दीना।” प्रतिकूल परिस्थितियों में दुःखी न हो, अनुकूल में ज्यादा वाह-वाह न करें। ये सब प्रभु हमारी परीक्षा ले रहे हैं। ऐसा समझ कर प्रभु को वंदन करो। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग , गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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