पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भावना के बश में होकर भगवान् सदा भक्तों को संभालते हैं।। भगवान् महाभारत युद्ध के बाद द्वारिका पधारे, भगवान् की महारानियां अपने बालकों को गले लगाकर भगवान् से सम्मिलन के सुख का अनुभव कर रही हैं। उधर अर्जुन भी पीछे-पीछे, हस्तिनापुर से द्वारिका चले आये। अर्जुन श्रीकृष्ण के बिना नहीं रह सकते थे, यह अर्जुन की एक कमजोरी थी। समझ लो, भक्त की यह मजबूरी है कि वह बिना भगवान् के रह नहीं सकता और जिस दिन हमारे-आपके जीवन में यह स्थिति आ जायेगी, आप ठाकुर के बिना नहीं रह सकोगे, उस दिन नोट कर लो कि ठाकुर भी आपके बिना नहीं रह सकेगा क्योंकि वह सबके अंदर बैठा हुआ है। ठाकुर तो तैयारी किये खड़ा हुआ है तुम्हें मिलने के लिये, तुम्हें दर्शन देने के लिये। कमी है हमारी तैयारी की, हमारी व्याकुलता की।
माता सन्तान का मुख देखना चाहती है। पुत्री अथवा पुत्रवती होना चाहती है। अपने लाल को, अपने बेटे को दूध पिलाना चाहती है, उसके लिये उसे नौ माह तक गर्भधारण का कष्ट उठाना पड़ता है। गर्भ की जो मरणजन्य पीड़ा होती है। कहते हैं प्रसव की पीड़ा असह्य होती है। माता का दुबारा जन्म ही माना जाता है, नाशवान पुत्र का मुख देखने के लिये मां को प्रसव की पीड़ा सहन करनी पड़ती है और भक्त भगवान् का मुख देखना चाहता है, प्रसव की पीड़ा जैसी पीड़ा भी जीवन में नहीं आई तो कन्हैया का दर्शन कैसे हो सकेगा? यदि नित्य का दर्शन करना चाहते हो? जीवन में कुछ पीड़ा होनी चाहिये कि नहीं? आओ नंदलाल तड़प रहे हैं हम, ‘तुम बिन रह्यो न जाय।’ कभी ऐसी पीड़ा हुई? छियान्नबे दिन तक मीरा ने अन्न नहीं खाया, केवल गिरधर गोपाल को नहला कर चरणामृत ही पी कर रह जाती थी।
मीरा कहती थी- मेरे गिरधर! अब मुझे शरीर नहीं चाहिये और इस शरीर से तू मिलना नहीं चाहता, मेरा शरीर पापी है, इस शरीर से तू मुझे छुड़ा दे, ताकि जल्दी तेरे चरणों में आ जाऊं, अब तेरा वियोग सहन नहीं होता। छियान्नबे दिनों तक मीरा ने रोटी नहीं खाई। ऐसा मीरा के जीवनी में लिखा हुआ है। मीरा का गुलाब के समान, कमल के फूल से भी ज्यादा सुंदर और सुकुमार शरीर सूखकर हल्दी की तरह पीला पड़ गया, अंगुली की अंगूठी मानो कंगन बन गई थी, हड्डियां रह गई थी। मीरा ने अपनी कलम से स्वयं लिखा है। मेरो नातो श्याम को और न नातो कोय। पाना ज्यों पीली पड़ी लोग कहें पिल रोग।
मीराबाई
सुखिया सब संसार है, खावै अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै।।
कबीरा हंसना दूर कर, कर रोने से प्रीत।
बिन रोये कित पाईया प्रेम पियारा मीत।।
लेकिन यह रोना संसार के लिये नहीं, भगवान के लिये होना चाहिए। संसार के लिए जीव अनादिकाल से रो रहा है, क्या मिला? नाशवान संसार। संसार के लिये रोवोगे तो संसार मिलेगा और भगवान् के लिए रोवोगे तो भगवान् मिलेगा, जीवन धन्य होगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा,(उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)