श्रीलंका। गंम्भीर संकट के दौर से गुजर रहे भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका को बुधवार को नया राष्ट्रपति मिल गया। कार्यवाहक राष्ट्रपति का दायित्व सम्भाल रहे रानिल विक्रमसिंघे अब राष्ट्रपति निर्वाचित घोषित किए गए हैं। 225 सदस्यीय संसद में विक्रमसिंघे को 134 सांसदों ने अपना समर्थन दिया, जबकि इस पद के लिए 113 से अधिक वोट पाने की जरूरत थी।
उनके विरोध में खड़े दो प्रत्याशियों में दुल्लास अल्हाप्पेरूमा को 82 और तीसरे प्रतिद्वन्दी अनुरा कुमारा दिशानायके के पक्ष में तीन वोट पड़े। 1978 के बाद यह पहला अवसर था जब सांसदों ने गुप्त मतदान के माध्यम से राष्ट्रपति चुना। विक्रमसिंघे को सत्तारूढ़ पार्टी एसएलपीपी के ज्यादेतर सांसदों ने वोट किया। इस पार्टी पर राजपक्षे परिवार का पूरा प्रभाव है। राष्ट्रपति पद से गोटाबाया राजपक्षे के इस्तीफे के बाद गुप्त मतदान से चुनाव कराया गया था।
नये राष्ट्रपति विक्रमसिंघे के समक्ष चुनौतियों का अम्बार है। इनसे निबटना आसान नहीं है। 73 वर्षीय रानिल विक्रमसिंघे छह बार श्रीलंका के प्रधान मंत्री रह चुके हैं। वह राजपक्षे के करीबी हैं। इसलिए राजपक्षे परिवार से नाराज प्रदर्शनकारी विक्रमसिंघे को पसन्द नहीं करते हैं उनसे भी इस्तीफे की मांग की गयी थी और पिछले दिनों प्रदर्शनकारियों ने उनके निजी आवास में आग लगा दी थी। विक्रमसिंघे ने देश में आपातकाल लगा दिया है और सुरक्षाबलों तथा पुलिस को काफी अधिकार भी दे दिये गये हैं।
विक्रमसिंघे के राष्ट्रपति चुने जाने पर प्रदर्शनकारियों ने कहा है कि यह चुनाव हमें स्वीकार नहीं है। उनका विरोध पुनः शुरू हो गया है लेकिन देश में सबसे बड़ी चुनौती कानून- व्यवस्था लागू करने की है। इसमें उन्हें सफलता मिल सकती है। प्रदर्शनकारी उन पर राजपक्षे परिवार के हितों की रक्षा करने का भी आरोप लगा रहे हैं। श्रीलंका की सबसे बड़ी समस्या आर्थिक संकट की है। वहां की आर्थिक स्थिति काफी बदतर है। जनता को जीवनयापन के लिए आवश्यक सामग्री नहीं मिल रही है। देश पर काफी कर्ज है और वह लगभग दीवालिया हो गया है। ऐसी स्थिति में श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है। भारत हर सम्भव सहयोग कर रहा है। उसे अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं से भी सहयोग मिलना चाहिए।