लाइफ स्टाइल। दुनिया में अलग-अलग तरह के लोग होते हैं। सभी के रूप-रंग से लेकर व्यवहार तक अलग-अलग होते हैं। जिंदगी सभी के लिए एक जैसी भी नहीं होती। हर किसी के जीवन मे उतार-चढ़ाव लगा रहता है। सुख-दुःख को एक ही सिक्के का पहलू माना जाता है। कभी खुशी तो कभी दुख जीवन का हिस्सा होते हैं। हालात के साथ ढलना मजबूत लोगों की पहचान होती है। दुख या परेशानी में ही किसी व्यक्ति के विवेक की परीक्षा होती है। परेशानियों में ही पता चलता है कि कोई भी व्यक्ति मेंटली कितना स्ट्रांग है। आइए जानते हैं मेंटली स्ट्रांग लोगों की खासियत-
1.परिस्थितियों का सामना करना:-
मेंटली स्ट्रांग लोग हर परिस्थिति का सामना करना जानते हैं। वो किसी भी परिस्थिति से घबराकर पीछे हटने की बजाय डर का सामना करते हैं। ये साहसपूर्वक जीवन की हर परिस्थिति का सामना कर आगे बढ़ते हैं।
2.असफलताओं का डटकर सामना करना:-
कई लोग एक ही बार असफल होने में टूट जाते हैं। घबरा जाते हैं। जबकि मेंटली स्ट्रांग लोग असफलताओं का डटकर सामना करते हैं। मेंटली स्ट्रांग लोग बार-बार असफल होने पर भी इसे एक सीख समझकर जीवन में आगे बढ़ते हैं। वो अपनी असफलताओं से टूटने के बजाय, सफलता के लिए फिर से ध्यान केंद्रित कर अपने काम में जुट जाते हैं।
3.काम की जिम्मेदारी लेना:-
मानसिक रूप से मजबूत लोग अपने कामों की जिम्मेदारी लेना जानते हैं। वो दूसरों को दोष देने की बजाय अपने काम की जिम्मेदारी खुद लेते हैं। वो मानसिक रूप से इतने मजबूत होते हैं कि परिणाम सकारात्मक हो या नकारात्मक उसकी जिम्मेदारी लेते हैं। किसी दूसरे को दोष नहीं देते।
4.खुद की स्वीकार्यता:-
मेंटली स्ट्रांग लोग खुद को स्वीकार करना जानते हैं। वो मानसिक रूप से इतने मजबूत होते हैं कि वो अपनी अच्छाई और बुराई को पहचानते हैं और उसे स्वीकार करते हैं। मानसिक रूप से मजबूत लोग अच्छे से जानते हैं कि उन्हें किस तरह के सुधार की जरूरत है।
5.आशावादी स्वभाव:-
मेंटली स्ट्रांग लोग आशावादी स्वभाव के होते हैं। वो कठिन परिस्थितियों में शिकायत करने, किसी को दोष देने की बजाय अच्छा होने की उम्मीद लगाते हैं। वो कठिन परिस्थितियों से निकलने के लिए आगे भविष्य में अच्छा होने की उम्मीद करते हैं।
6.तर्क पर ध्यान देना:-
मेंटली स्ट्रांग लोग तर्कों पर ज्यादा ध्यान देते हैं। ये मानसिक रूप से इतने मजबूत होते हैं कि ये अपनी भावनाओं को कभी भी खुद पर हावी नहीं होने देते। ये हमेशा भावनाओं की बजाय तर्क को प्राथमिकता देते हैं। इन्हें ये जानकारी रहती है कि भावनाएं विचारों पर कितना असर डाल सकती हैं। इसलिए ये भावनात्मक रूप से प्रतिक्रिया देने की बजाय तर्क पर ज्यादा ध्यान देते हैं।