CPI : लोगों की वास्तविकता देखने के बाद जीवन-यापन की वास्तविक लागत को सही ढंग से आंकने के लिए इस सर्वेक्षण को जल्द से जल्द अपडेट किया जाना चाहिए। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल में खुदरा महंगाई दर घटकर 3.16% पर आ गई जो लगभग छह वर्षों का सबसे निचला स्तर है, लेकिन वहीं देखा जाए तो शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सामानों पर बढ़ते खर्च को विशेषज्ञ अधूरी तस्वीर मानते हैं।
उपभोक्ताओं की खपत में बदलाव
जानकारी के मुताबिक, मद्रास स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के निदेशक प्रो. एन. आर. भानुमूर्ति का कहना है कि उपभोक्ताओं की खपत में बदलाव आया है और वर्तमान सूचकांक में उसका समुचित प्रतिनिधित्व नहीं है। उन्होंने सुझाव के अनुसार सर्वेक्षण में खाद्य वस्तुओं का भारांश घट सकता है और मोबाइल जैसे नए खर्च शामिल होने चाहिए।
CPI आंकड़ों की गणना में जरूरी बदलाव
सामाज के आर्थिक खर्चों को देखते हुए जनता का कहना है बदलते उपभोग पैटर्न को अर्थशास्त्रियों ने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) की गणना में बदलाव की मांग की है। क्योंकि अब लोग होटल-रेस्तरां में अधिक खर्च कर रहे हैं और स्कूल फीस और स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर भी खर्च बढ़ा है। उपभोक्ता व्यय के माध्यम से यह समझा जाता है कि परिवार किन वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च करते हैं। वर्तमान में CPI की गणना 2011-12 के सर्वेक्षण के आधार पर होती है। हाल ही में 2022-23 और 2023-24 में नया सर्वेक्षण किया गया है।
खुदरा महंगाई दर 3.16%
प्रो. एन. आर. भानुमूर्ति ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि अप्रैल में खुदरा महंगाई दर 3.16% भले ही दिख रही हो, लेकिन इसका मतलब कीमत में बिरावट व समझें। बल्कि उनकी बढ़ोतरी की दर में कमी है। जेएनयू के डॉ. अरुण कुमार ने भी बताया है कि मुद्रास्फीति और कीमतों को समझने में यह अंतर महत्वपूर्ण है—मुद्रास्फीति कम होने का अर्थ यह नहीं है कि चीजें सस्ती हो रही हैं, बल्कि अब उनकी कीमतें धीमी दर से बढ़ रही हैं।
पूर्व प्रोफेसर डॉ. अरुण कुमार ने कहा-
जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर डॉ. अरुण कुमार ने कहा कि अगर आमदनी उसी अनुपात में नहीं बढ़ रही है, तो महंगाई का असर लोगों की क्रय शक्ति पर पड़ेगा। जिसके दौरान महंगाई की दर सभी तक के लिए समान नहीं होती, क्योंकि यह उपभोग के स्तर और वस्तुओं की प्राथमिकता पर निर्भर करती है। डॉ. कुमार ने कहा कि कारोबारी वर्ग महंगाई से लाभ कमा सकता है, लेकिन मध्यम वर्ग, किसान और श्रमिकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। गरीब वर्ग की खपत मुख्यतः खाद्य पदार्थों पर केंद्रित होती है, जबकि अमीर तबका अन्य सेवाओं पर अधिक खर्च करता है।
उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण से असंतुलन को करें दूर
वर्तमान समय में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में खाद्य और पेय वस्तुओं की हिस्सेदारी 45.86% है, जबकि स्वास्थ्य, शिक्षा और घरेलू सेवाओं जैसे विविध मदों की हिस्सेदारी मात्र 28.32% है। डॉ. कुमार ने इस मामले पर जोर देते हुए कहा कि शिक्षा और स्वास्थ्य का भारांश बढ़ाने की आवश्यकता है, क्योंकि अब सेवा क्षेत्र अर्थव्यवस्था का लगभग 55–60% हिस्सा बन चुका है, जबकि CPI में इसकी भागीदारी सिर्फ 26% है। उन्होंने कहा कि नए उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण से इस असंतुलन को दूर किया जा सकता है और मुद्रास्फीति की ज्यादा वास्तविक तस्वीर सामने लाई जा सकती है।
इसे भी पढ़ें :- दुश्मनों की अब खैर नहीं, भारत सरकार ने 40000 करोड़ रुपये के आवश्यक उपकरण खरीदने की दी मंजूरी