संघर्ष की मिसाल हैं द्रौपदी मुर्मू

नई दिल्ली। देश के 15 वें राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू ने गुरुवार को विपक्ष के साझा प्रत्याशी यशवन्त सिनहा को भारी मतों के अन्तर से पराजित कर बड़ी जीत दर्ज की है। द्रौपदी मुर्मू पहली आदिवासी महिला हैं, जो राष्ट्रपति पद पर आसीन होने जा रही हैं। उन्होंने जीत का नया इतिहास रचा है। द्रौपदी मुर्मू की जीत पहले से ही सुनिश्चित थी, क्योंकि आकड़े उनके पक्ष में थे। साथ ही विपक्ष के लोगों ने भी उनके पक्ष में मतदान कर बड़ी जीत का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

चुनाव की रणनीतियां भी ऐसी बनी थी जिसके चलते विपक्ष एकजुट होने के बजाय बिखर गया। झारखण्ड की राज्यपाल रह चुकी द्रौपदी मुर्मू देश की दूसरी महिला हैं, जिन्होंने राष्ट्रपति पद का चुनाव जीता है। लगभग 15 वर्ष पूर्व 21 जुलाई 2007 को प्रतिभा देवी सिंह पाटिल राष्ट्रपति पद के लिए विजयी हुई थीं। द्रौपदी मुर्मू की जीत की घोषणा के साथ ही उनके गृह जनपद ओडिशा के मयूरभंज से लेकर पूरे देश में जश्न का अद्भुत माहौल देखने को मिला।

राजधानी दिल्ली में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पूरे मंत्रिमण्डल ने द्रौपदी मुर्मू के आवास पर पहुंचकर उन्हें जीत की बधाई दी। 64 वर्षीया द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए प्रत्याशी बनाने का निर्णय भी चौंकाने वाला था। उनका नाम पहले चर्चा में नहीं था जबकि विपक्ष के साझा प्रत्याशी यशवन्त सिनहा के नाम की घोषणा पहले ही हो गई थी। इसके बावजूद विपक्ष एकजुट नहीं हो सका।

अनेक क्षेत्रीय दलों ने भी द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया जिसका ही यह परिणाम रहा कि उन्होंने बड़ी जीत दर्ज की। अत्यन्त ही गरीब पारिवारिक पृष्ठभूमि में जन्मी द्रौपदी मुर्मू सादगी और संघर्ष की एक मिसाल हैं। क्लर्क और फिर अध्यापिका के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति पद पर आसीन होना अत्यन्त ही प्रेरक है। उन्होंने ओडिशा में विधायक और मंत्री पद का भी दायित्व सम्भाला था। उम्मींद है कि राष्ट्रपति पद पर अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाने में भी वह सफल होंगी।

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