नई दिल्ली। महंगाई के इस दौर में जीवनरक्षक दवाओं का महंगा होना मानव जीवन पर बड़ा संकट है। दवाओं के मूल्य में वृद्धि से अब बीमारी से जीवन की रक्षा और भी मुश्किल हो गई है, जो अत्यन्त चिंतनीय है। अब तक दस से बीस प्रतिशत तक दवाओं की कीमत में वृद्धि हो चुकी है, जिसमें लम्बे समय तक चलने वाली दवाएं भी शामिल हैं। दवाओं के मूल्य में वृद्धि के लिए लगातार माल भाड़ा का बढ़ना और कच्चे माल का महंगा होना बताया जा रहा है।
हालांकि किसी भी दवा का संकट नहीं है। बाजार में भी पर्याप्त मात्रा में सभी दवाएं उपलब्ध हैं लेकिन निर्माण लागत बढ़ने से इनके मूल्य में लगातार वृद्धि हो रही है जो मरीजों की दिक्कतें बढ़ाने वाली हैं। विशेषकर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए तो यह जानलेवा ही साबित होगी, क्योंकि महंगी का असर सबसे ज्यादा शुगर, एलर्जी, दर्द, बीपी और गठिया जैसी बीमारियों में लम्बे समय तक चलने वाले इलाज की दवाओं पर पड़ा है।
बहुत-सी बीमारियों में मरीज को उम्र के अंतिम सांस तक दवा खानी पड़ती है। ऐसे मरीजों का इलाज कराना बेहद महंगा हो गया है। इन जीवन रक्षक दवाओं की कीमत प्रति पत्ते 15 से 25 रुपए तक बढ़े हैं, जो असहाय मरीजों के जीवन पर गम्भीर संकट है। दवाओं के साथ महंगाई की मार नवजात शिशुओं के दूध पर भी पड़ा है। पिछले दो- तीन सप्ताह के दौरान शिशुओं के पाउडर दूध की कीमत में 20 से 30 रुपए प्रति डिब्बे तक वृद्धि हुई है जो उचित नहीं है।
अलग- अलग कम्पनियों ने मनमानी वृद्धि की है। इसे नियंत्रित करने के लिए सरकार को ठोस और सार्थक कदम उठाने की जरूरत है जो कंपनियों और शिशुओं के हित में हो। शिशुओं के पाउडर दूध में पौष्टिक पदार्थ का मिश्रण होता है जो उनकी कुपोषण से रक्षा करता है। शिशुओं के लिए डिब्बा बंद दूध की नियंत्रित कीमत और उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए।
महंगी आज के दौर में ज्वलन्त और विकट समस्या है। संसद से लेकर सड़क तक आवाज मुखर हो रही है, ऐसे में दवाओं की कीमतों में वृद्धि कोढ़ में खाज पैदा करने वाला है। सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। साथ ही उन कारणों का निराकरण होना चाहिए जिससे महंगाई बेलगाम हो रही है।