नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हाल ही में तीन यूरोपीय देशों जर्मनी, डेनमार्क और फ्रांस की यात्रा से लौटे है। यह यात्रा बहुत सफल और सार्थक रही है क्योंकि आपसी रिश्ते में मजबूती के साथ ही सहयोग को बढ़ाने की सम्भावनाएं भी बलवती हुई हैं। रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के दुष्प्रभावों की चिन्ता अब सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है। इस युद्ध के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए दुनिया की चिंता जायज मानी जा रही है।
आज इससे बचने के लिए सभी देशों को एक साथ मिलकर समन्वित प्रयास करने की आवश्यकता है। इस युद्ध से पूरा विश्व प्रभावित हो रहा है। यूरोप की सबसे उन्नत अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करने वाले नार्डिक देशों और भारत ने युद्ध को तत्काल रोकने की पुरजोर अपील करने के साथ ही युद्ध के परिणामों और उसके क्षेत्रीय तथा वैश्विक प्रभावों से विश्व को बचाने के उपायों को खोजने पर भी जोर दिया गया है।
नार्डिक देशों में शामिल स्वीडन, फिनलैण्ड, डेनमार्क, नार्वे और आइसलैण्ड के नेताओं से प्रधानमंत्री मोदी ने इस सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा की जिससे कि युद्ध के दुष्प्रभावों से दुनिया को बचाया जा सके। डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में आयोजित भारत-नार्डिक शिखर बैठक में यूक्रेन रूस युद्ध सहित अनेक अन्तरराष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा से जुड़े मुद्दे पर महत्वपूर्ण वार्ता हुई। इसमें बहुपक्षीय सहयोग, हरित प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में मिलकर काम करनेपर भी सहमति हुई है। व्यापार और ऊर्जा सहित अन्य क्षेत्रों में सहयोग का दायरा बढ़ सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी का नार्डिक देशों की कम्पनियों से भारत की सागरमाला परियोजना के तहत ब्लू इकोनामी के क्षेत्र में निवेश करने का आग्रह नये अवसरोंको जन्म देता है। फ्रांस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और फ्रांसके राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ संक्षिप्त किन्तु अत्यन्त महत्वपूर्ण वार्ता से दोनों देशों के मैत्री सम्बन्धों में और प्रगाढ़ता आयी है। फ्रांस ने आश्वस्त किया है कि वह परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए पूरा सहयोग और समर्थन करने से पीछे नहीं हटेगा। फ्रांस का यह भरोसेमंद आश्वासन भारत के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है लेकिन चीन के विरोध को भी शान्त करना जरूरी है।