मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक ने बुधवार को रेपो रेट में 50 बेसिस प्वाइण्ट अर्थात् 0.5 प्रतिशत की वृद्धि कर दी। इससे रेपो रेट अब 4.90 प्रतिशत के स्तर पर आ गया, जबकि यह 4.40 प्रतिशत था। इसके पूर्व चार मई को रेपो रेट में 40 बेसिस प्वाइण्ट की वृद्धि की गयी थी।
पिछली बार अकस्मात रेपो रेट बढ़ायी गयी थी जबकि इस बार रेपो रेट में प्रत्याशित वृद्धि हुई है। इसका संकेत रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने पहले ही कर दिया था। उन्होंने यह भी कहा था कि महंगाई अभी और बढ़ सकती है। रेपो रेट में इस वृद्धि का सीधा प्रभाव बैंकों के ब्याज दर पर पड़ेगा और ऋण लेना महंगा हो जाएगा।
साथ ही ईएमआई में भी वृद्धि होगी और उन लोगों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा, जिन्होंने बैंकों से ऋण लिया है। रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए मुद्रास्फीति के अनुमान को भी बढ़ाकर 6.7 प्रतिशत कर दिया है। पहले मुद्रास्फीति 5.7 प्रतिशत के स्तर पर रहने का अनुमान लगाया गया था।
गवर्नर शक्तिकांत दास का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति को अपने लक्ष्य के दायरे में लाने के लिए कदम उठा रहा है। मुद्रास्फीति के अभी ऊपर जाने का जोखिम बना हुआ है। कच्चे तेल के दामों में उछाल आने से महंगी दर चालू वित्त वर्ष की पहली तीन तिमाहियों में छह प्रतिशत के ऊपर बने रहने की आशंका है।
इसे नीचे लाने के लिए सरकार को विशेष उपाय करने होंगे, जिसकी जरूरत भी है। रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2022- 23 में आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को 7.2 प्रतिशत पर बरकरार रखा है। शक्तिकांत दास का कहना है कि विश्व के अनेक देशों में आर्थिक व्यवस्था में कमजोरी के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में दृढ़ता है।
देश में शहरी और ग्रामीण मांग में भी सुधार हो रहा है। वैसे विश्व बैंक ने भी भारत का जीडीपी वृद्धि दर अनुमान घटाकर 7.5 प्रतिशत कर दिया है। इसका कारण बढ़ती महंगाई, आपूर्ति व्यवस्था में बाधा और रूस यूक्रेन युद्ध का प्रभाव माना जा रहा है। रिजर्व बैंक के रेपो रेट बढ़ाने के फैसले के बाद गृह लोन, कार लोन समेत अन्य प्रकार के ऋण पर प्रभाव पड़ेगा।
इसके साथ रियल स्टेट के कारोबार भी प्रभावित होंगे। लगातार बढ़ रही महंगाई से निजाद दिलाने के लिए सरकार को उचित कदम उठाना चाहिए क्योंकि देश की जनता पहले से ही बोझ तले कराह रही है।