बरेली। किसी बीमारी या हादसे से पशु का पैर कट जाए तो वे चलने-फिरने में असमर्थ हो जाते हैं। भोजन के अभाव में धीरे-धीरे कमजोर होते जाते हैं। ऐसे में डेयरी संचालक, किसान या अन्य पशु प्रेमियों के लिए भी अपंग पशु बोझ होते हैं। इस तकलीफ से अब पशुओं को निजात दिलाने के लिए बरेली के आईवीआरआई पॉली क्लीनिक के वैज्ञानिकों ने कृत्रिम पैर तैयार किया है। इसका परीक्षण भी सफल रहा।
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) रेफरल वेटरनरी पॉलीक्लिनिक प्रभारी प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अमरपाल सिंह ने कहा कि पिछले वर्ष नवंबर में ऑल इंडिया नेटवर्क प्रोग्राम ऑन डायग्नोसिस इमेजिंग मैनेजमेंट ऑफ सर्जिकल कंडीशन इन एनीमल प्रोजेक्ट के तहत पशुओं के कृत्रिम पैर लगाने को लेकर रिसर्च शुरू हुआ था।
ये वैज्ञानिक रहे शामिल :-
प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अमरपाल सिंह नेतृत्व में हुई रिसर्च में सर्जरी विभाग की टीम के वैज्ञानिक डॉ. रोहित, डॉ. अभिषेक, डॉ. अभिजीत पावड़े शामिल रहे। इसके लिए हाई डेंसिटी पॉली थाइमीन, सीमेंट आदि उपकरण मंगाए गए। जैसे-जैसे रिसर्च आगे बढ़ी खामियां पता चलती रहीं और उसे दूर करते रहे।
उन्होंने बताया कि एचडीपीई प्लास्टिक का सर्वाधिक मजबूत स्वरूप है। इसका प्रयोग करने की वजह थी कि बड़े पशुओं का भार अधिक होता है। ऐसे में कृत्रिम पैर पशु का भार वहन कर सके और बाद में उन्हें किसी तरह से कोई दिक्कत न हो। धातु का प्रयोग करने से जंग लगने से अन्य रोग और संबंधित धातु से घाव होने की आशंका रहती है। एचडीपीई मंगाकर उसे 185 डिग्री तापतान में पिघलाकर पैरों का आकार दिया गया।
हादसे में घायल गोवंश को लगा कृत्रिम पैर :-
वैज्ञानिक डॉ. रोहित के अनुसार पिछले दिनों बरेली शहर के गणेश नगर मोहल्ले के रहने वाले प्रियांशु पाठक ने हादसे में घायल एक गोवंश को भर्ती कराया था। घाव बेहद गंभीर था और पांव सड़ रहा था। लिहाजा, उसे बचाने के लिए पीछे की ओर का एक बायां पैर काटना पड़ा। कृत्रिम पैर को लगाने के बाद घुटने के पास और खुर के पास सॉकेट से फंसाया गया। चलाकर देखा गया तो स्थिति ठीक मिली। लेकिर गोवंश कृत्रिम पैर से तालमेल नहीं बिठा पा रही थी। ऐसे में करीब 15 दिनों से प्रशिक्षित किया जा रहा था। लिहाजा, अब गोवंश कृत्रिम पैर के साथ चलने लगा है।