कर्मयोग की है बहुत महिमा: दिव्य मोरारी बापू
राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भगवान् द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न की कथा-भगवान श्री कृष्ण और महारानी रुक्मणी के यहां प्रथम पुत्र के रूप में श्री प्रद्युम्न जी महाराज का जन्म हुआ। ये भगवान की विभूति है। प्रद्युम्न शब्द का अर्थ होता है, जो स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित है, अर्थात् कर्मयोगी। श्री प्रद्युम्न जी महाराज महान कर्मयोगी थे। माता-पिता बड़े महान् हों और बालक अपने जीवन में कुछ न कर पाये, केवल माता-पिता के नाम से ही जाना जाय, ये बहुत बड़ी बात नहीं है। बालक भी अपने जीवन में महानतम कर्म करे, ताकि वह अपने महान कर्मों से जाना पहचाना जाय। कर्मयोग की बहुत महिमा है। तैंतीस कोटि देवताओं में से कामदेव भगवान शंकर की समाधि तोड़ने गया, भगवान् शंकर की दृष्टि मात्र से जलकरके भस्म हो गया। कामदेव की पत्नी रतिदेवी की प्रार्थना पर भगवान् शंकर ने वरदान दिया था, तुम्हारे पति कामदेव भगवान् श्री कृष्ण के प्रथम पुत्र के रूप में जन्म लेंगे और तुम्हें सशरीर प्राप्त होंगे,वही कामदेव ही प्रद्युम्न के रूप में जन्म लिये। भगवत में कामदेव को भगवान् का अंश बताया गया है। अंश तो हम आप भी भगवान के ही हैं। प्रत्येक जीव भगवान् का अंश है।
ईश्वर अंश जीव अविनाशी। चेतन अमल सहज सुखराशी। हम अंश तो भगवान के हैं, लेकिन अपने को माया से जोड़ रखे हैं, अपनी पहचान माया से ही बताते हैं। यही हमारे सम्पूर्ण दुखों का कारण है। अगर हम अपने को भगवान् से जोड़कर रखें, भगवान का ही चिंतन करें तो हमारे जीवन से दुःखों की निवृत्ति हो जायेगी। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम एवं वात्सल्यधाम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में चल रहे दिव्य चातुर्मास महामहोत्सव के अवसर पर पितृपक्ष में पाक्षिक भागवत के ग्यारहवें दिवस कीकथा में भगवान के यहाँ प्रद्युम्न जी महाराज का जन्म, भगवान के अन्य विवाहों की कथा, श्रीरुक्मणीकृष्ण संवाद की कथा का वर्णन किया गया। कल की कथा में भगवान की अन्य द्वारिका लीला का वर्णन किया जायेगा।