बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए इन बातों का रखें ध्यान…

रिलेशनशिप। बच्चे बहुत मासूम होते है। वह जो देखते हैं, समझते हैं, वही सीखते हैं। उनकी सीखने की प्रवृत्ति बहुत तेज होती है। ऐसे में बाल मन पर पड़ने वाला प्रभाव उनके व्यवहार पर भी असर डालता है। किशोर/ किशोरियों के व्यवहार में एक उम्र के बाद बदलाव आना शुरू होता है। कई ऐसे मामले सामने आएं है, जिसमें किशोर आपराधिक प्रवृत्ति की ओर चले जाते हैं या उनके बाल मन पर गलत व्यवहार आने लगता है। उनकी मानसिक सेहत पर असर होने पर वह गलत व्यवहार करने लगते हैं। क्रोध, झूठ बोलना, चोरी या अपशब्दों का उपयोग करने लगते हैं। ऐसे में बाल मस्तिष्क को सेहतमंद रखने के लिए कुछ तरीकों को अपना सकते हैं। बच्‍चों के मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत बनाने के लिए आपको हमेशा इन चार बातों का ध्यान रखना चाहिए। आइए जानते है ये बातें…

 

भावना साझा करने के लिए प्रेरित करें

  • बच्चों को घुलने मिलने का मौका दीजिए। उनके दिन के बारे में पूछें और किसी काम में मदद के लिए भी बुला सकते हैं। इस दौरान उनसे बातचीत करें।
  • बच्चे को भरोसा दिलाएं कि आप हमेशा उनके साथ हैं। उन्हें बताएं कि आप उनके लिए क्या महसूस करते हैं और क्या सोचते हैं। बच्चे को प्रोत्साहित करने वाले शब्द बोलकर अपनी भावनाएं साझा करें।
  • बच्‍चों के मनोभावों को समझें। वह क्या महसूस करते हैं, इसे स्वीकार करें, भले ही आपको उनकी सोच असहज लग रही हो। उसके खुलकर बात करें कि आप उन्हें समझते हैं।
  • अगर आपको कोई बात पसंद नहीं है तो उन्हें धैर्य से ये बात समझाएं। वहीं उनके कुछ करने पर आपको खुशी होती हैं तो उसे भी साझा करें।

 

मदद के लिए समय निकालें –

  • किशोर/किशोरियों के साथ मिलकर नई दिनचर्या और संभव दैनिक लक्ष्य तय करें। स्कूल के काम के बीच घर के काम से भी जोड़ें और रात के खाने से पहले घर के कामों को पूरा करने का लक्ष्य रखें।
  • किशोरावस्था का मतलब आजादी से है। इसलिए किशोर होते बच्चों को खुद के लिए पर्याप्त समय और स्थान दें।
  • बच्चों के लिए कुछ ऐसी गतिविधियां सोचें, जो उन्हें अपने मन का करने का मौका दे सके। किशोर हताश हो रहा है तो उनके साथ विचार विमर्श करके समस्या का समाधान करें।

 

विवादों का निपटारा –

  • किशोर के विचारों को सुनें और ठंडे दिमाग से उसे हल करें। ध्यान रखें कि आप के साथ वह भी तनावग्रस्त हो सकते हैं।
  • अगर आप क्रोध में हों तो किसी मुद्दे पर उनसे बात न करें। वहां से हट जाएं, गहरी सांस लें और खुद को शांत करें। बाद में उस विषय पर बच्चे से बात कर सकते हैं।
  • बल प्रयोग करने से बचें। बच्चे खुद को नियंत्रित करने का संघर्ष कर रहे होंगे। ऐसी कठिन परिस्थितियों में उनकी इच्छाओं के साथ सहानुभूति रखें और उन पर हावी न हों।
  • बच्चों के साथ ईमानदार और पारदर्शी बनें। आप भी उन्हें अपनी कमजोरी बताएं या तनाव की वजह बता सकते हैं। आप कठिन परिस्थितियों में हैं, ये उन्‍हें बताएं।

स्वयं की देखभाल –

  • बच्चों की देखभाल करने वालों को अनेकों चीजों से निपटना पड़ता है। इसलिए खुद की देखभाल भी करें।
  • किसी और के द्वारा मदद पूछे जाने का इंतजार न करें। अपने परिवार के किसी सदस्य या किसी अन्य से बातें करें।
  • संबंधों के लिए समय निकालें। ऐसा कुछ खोजिए जिनसे आप अपने अनुभव और भावनाएं साक्षा कर सकते हैं।
  • थोड़ा समय उन चीजों के लिए निकालें जो आपको तनाव से निपटने और उन्हें कम करने में मदद करती है।
  • सहायक सकारात्मक सहनीय रणनीतियों को अपनाएं। व्यायाम करना या दोस्तों से बात करना आदि के जरिए अपने विचार रखना गौरवान्वित करता है।

 

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