खीरगंगा के गरम पानी से कम होगा प्रदूषण
हिमाचल प्रदेश। हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू में मणिकर्ण से थोड़ा ऊपर खीरगंगा के गरम पानी से कोयला खानों और कई अन्य उद्योगों का प्रदूषण कम होगा और इससे खाद भी बनेगी। यह खुलासा दिल्ली विश्वविद्यालय में कार्यरत छितकुल निवासी प्रोफेसर रामकृष्ण नेगी के शोध में हुआ है। 55 डिग्री सेंटीग्रेड तक के इस गरम पानी में कई मित्र सूक्ष्म जीव जिंदा मिले हैं। इससे प्रदेश के अन्य चश्मों या झरनों के पानी का भी उचित इस्तेमाल होने की उम्मीद बनी है। डॉ. नेगी और उनके अन्य साथियों ने पानी, इसके तलछट आदि के नमूने लिए। इनमें 41 जीनोम में 39 बैक्टीरिया और 2 सूक्ष्मकोशीय जीव थे। इनमें नाइट्रेट, सल्फेट जैसे अकार्बनिक मिश्रणों का क्षय पाया गया।
इनमें से कई बैक्टीरिया अथवा जीवाणु सल्फेट को कम करने वाले, सल्फर को ऑक्सीडाइज करते और मीथेनोजेनिक पाए गए। इनका एसिड, कॉपर, कोयला, सिंथेटिक खानों आदि में माइक्रोबियल उपचार में इस्तेमाल हो सकता है। ये ऐसे उद्योगों में खतरनाक धातु कणों और रसायनों का क्षय कर सकते हैं। पोल्ट्री, डेयरी आदि से निकलने वाले अपशिष्ट तत्वों में खतरनाक रसायनों का कुप्रभाव कम करने और बेहतरीन खाद बनाने में भी इनका इस्तेमाल हो सकता है। ये सल्फेट को 80 फीसदी तक घटा सकते हैं। मणिकर्ण में तापमान 90 से 95 डिग्री सेंटीग्रेड होता है। कम तापमान वाले चश्मों में खीर गंगा का शोध उपयोगी होगा। पुराने समय में खीर गंगा के पानी का उपयोग कई रोगों के उपचार में भी होता रहा है। सल्फर ज्यादा होने से पानी के स्रोत पर खीर जैसी सफेद पपड़ी जमती है। इसी से इसे खीर गंगा कहते हैं।