जानें समुद्र में उठने वाला ज्‍वार-भाटा चंद्रमा से कैसे होता है प्रभावित?

रोचक जानकारी। समुद्र की लहरें एक निश्चित समय के अंतराल में ऊपर उठती हैं और नीचे गिरती हैं। जब समुद्री जल की लहरें ऊपर उठती हैं तो उसे ज्वार तथा जब नीचे जाती है उसे भाटा कहते हैं। यह प्रक्रिया 12 घंटे 26 मिनट के अंतराल में होती है। ज्वार उत्पन्न होने में 26 मिनट का यह अंतर पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमने के कारण होता है।

क्योंकि चंद्रमा की आकर्षण शक्ति का समुद्री जल पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है इसलिए पृथ्वी का वह हिस्सा जो चंद्रमा के सबसे करीब होता है उस स्थान पर तीव्र ज्वार आता है। इसीलिए पूर्णिमा के दिन ज्वार ज्यादा होता है। ज्वार पृथ्वी पर सूर्य और चंद्रमा के आकर्षण बल के कारण उत्पन्न होता है।

ज्वार-भाटा के प्रकार:-

ज्वार भाटा को ऊंचाई और चंद्रमा के अनुसार विभिन्न भागों में बांटा गया है-

हाई टाइड्स:-

अमावस्या और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी एक सीध में आ जाते हैं इन तीनों के मिले जुले प्रभाव से टाइड्स में बढ़ोतरी होती है। जिस कारण इसे दीर्घ ज्वार या हाई टाइड्स कहते हैं।

लो टाइड:-

जब सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी के सेंटर पर समकोण बनाते हैं जिस कारण सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी के पानी को अलग-अलग डायरेक्शन में अट्रेक्ट करते हैं, जिससे उत्पन्न ज्वार कम ऊंचे होते हैं इसे लघु ज्वार कहते हैं।

स्प्रिंग टाइड:-

जिस स्थान पर दिन में ज्वार भाटा सिर्फ एक बार आता है उसे स्प्रिंग टाइड कहते हैं। यह डेली टाइड्स 24 घंटे 52 मिनट के बाद आता है। यह ज्वार ज्यादातर मेक्सिको की खाड़ी में देखा जाता है।

नीप टाइड्स:-

जब समुद्र में दिन में चार बार ज्वार भाटा उत्पन्न होता है उसे अर्द्ध दैनिक ज्वार या नीप टाइड्स कहते हैं। इसमें दिन में दो शार्ट टाइड और दो हाई टाइड उत्पन्न होते हैं।

कंबाइन टाइड्स:-
कंबाइन टाइड्स जब समुद्र में दैनिक एवं अर्द्ध-दैनिक ज्वार उत्पन्न होते हैं तो उसे मिश्रित ज्वार कहते हैं।

 

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