लाइफस्टाइल। बच्चों का लालन-पालन करना कोई आसान काम नही है। उनकी हर जरूरत को समझकर उसे पूरा करना और समझना बहुत जरूरी होता है। ये काम तब और मुश्किल हो जाता है, जब न्यू बोर्न बेबी हो। बच्चे अक्सर अपनी बातों को समझाने की रोते हैं। हालांकि बच्चे अलग-अलग कारणों से रोते हैं। कभी डर तो कभी गुस्से और भूख लगने की वजह से बच्चों का रोना आम बात है। लेकिन जब बच्चे जरूरत से ज्यादा रो रहे हों तो उनकी समस्याओं को समझने और उसका निदान करने की आवश्यकता होती है।
कई बार ऐसा भी होता है कि बड़े बच्चे बिना किसी वजह के रोते हैं और फिर शांत भी नहीं होते। ऐसे में जरूरी है कि रोने का कारण समझकर उसका निदान किया जाए। बच्चे जब पैदा होते हैं तो उनका रोना सामान्य बात होती है। क्योंकि वो रोकर ही अपनी भावनाओं को जाहिर करते हैं। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं अपनी भावनाओं को समझाने के लिए वो दूसरे तरीके सीखने लगते हैं। लेकिन फिर भी अक्सर वो रोकर ही बात समझाते हैं। चार से पांच साल के होते-होते बच्चे किसी खास कारण से ही रोते हैं। तो आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
- अगर आप अपने बच्चे के बार-बार रोने से परेशान हैं, तो पहले समझ लें कि हर उम्र के बच्चों के रोने के अलग कारण होते हैं।
- 1-3 साल के बच्चे अक्सर अपनी भावनाओं को समझाने, नखरा करने के लिए रोते हैं। अक्सर बच्चे बीमार होने के कारण या कंफ्यूज होकर रोते हैं।
- 4-5 साल के बच्चे कई बार थोड़ी सी चोट लगने और डांट देने पर रोने लगते हैं। अगर उनकी भावनाएं आहत होती हैं तो ये रोकर अपनी बात बताते हैं।
- 5 साल से ऊपर के बच्चे ज्यादातर शारीरिक चोट लगने या फिर किसी सामान के खो जाने पर रोने लगते हैं।
न्यू बोर्न बेबी के रोने के कारण :-
न्यू बोर्न बेबी के रोने के अलग-अलग वजह होते हैं। अक्सर बच्चे भूख लगने की वजह से रोते हैं। इसलिए जरूरी है कि बच्चों के खाने-पीने के समय का खास ख्याल रखा जाए।
दर्द या बीमार होने पर :-
कई बार बच्चे शारीरिक कष्ट की वजह से रोते हैं। पेट में दर्द, गैस या कान में होने वाला दर्द बच्चों को काफी परेशान करता है। बच्चे जब बोलने लायक हो जाते हैं तो आप उनसे थोड़े से सवालों के जरिए पूछ सकते हैं कि उन्हें क्या तकलीफ है। कई बार बच्चे बहुत ठंड लगने या गर्मी लगने से भी रोने लगते हैं। इसलिए अपने आसपास के तापमान का भी पूरा ध्यान रखें।
बच्चा अगर थक जाए :-
अगर बच्चे का पेट भरा है और उसे किसी प्रकार का तकलीफ भी नहीं है, इसके बावजूद भी रोता है, तो वो थका हुआ हो सकता है। बच्चे ज्यादा खेलने की वजह से थक जाते हैं और नींद ना आने पर चिड़चिड़ाने लगते हैं। इसलिए जरूरी है कि बच्चों की नींद के समय का ध्यान रखें।
अगर आपका बच्चा छोटा है और बोल नहीं पाता तो उसके इशारों से समझिए। बच्चे नींद आने और थके होने पर आंखें मलते और खेलने में उनका मन नहीं लगता। ऐसे में उन्हें आराम की जरूरत होती है। अगर बच्चा बोलकर अपने थकने की बात बता रहा है तो उसे पैरों में मसाज कर उसकी थकान को दूर करें और सुलाएं।
परेशान होना :-
कई बार नवजात शिशु और तीन से चार साल के बच्चे भी आसपास के शोर-शराबे से परेशान होकर रोने लगते हैं। अगर आपका बच्चा प्रीस्कूल में जाता है और लगातार रोता है तो कई बार वो अपने दिनभर की दिनचर्या और स्कूल की एक्टीविटीज से थककर और परेशान होकर रोता है।
कई बार बच्चे अपनी इच्छानुसार चीजें ना पाकर भी रोने लगते हैं। जैसे कि अगर आपका बच्चा फोन की जिद कर रहा है और ना देने पर रोता है। या फिर कोई मनपसंद खिलौना जो खराब हो गया हो। बच्चे ठीक ना कर पाने की स्थिति में भी रोने लगते हैं।
अगर आपका बच्चा लगातार रो रहा है और उसे भूख नहीं लगी या वो बिल्कुल ठीक है। तो हो सकता है कि वो केवल आपका साथ चाहता हो। इसलिए आप अपने बच्चे को पर्याप्त समय दें। जिससे कि वो खुद को सुरक्षित महसूस करें और उसे किसी तरह का भय या बिछुड़ने का डर ना हो।
बच्चों को चुप कराते समय रखें इन बातों का ध्यान :-
अगर बच्चा रो रहा है तो सबसे पहले जरूरी है कि उसके कारण को समझें। इसके साथ ही अपनी मानसिक स्थिति और मनोभावों को भी समझें। जैसे कि अगर बच्चा लगातार रो रहा है तो सबसे पहले खुद को शांत करें और गुस्सा ना करें। बच्चे से रोने के पीछे की वजह पूछे। सबसे आखिर में अगर बच्चा छोटा है और चुप नहीं हो रहा तो उसे डॉक्टर के पास ले जाएं। कई बार फीवर और तबियत खराब होने के कारण बच्चे जरूरत से ज्यादा रोने लगते हैं।