रोचक जानकारी। नागा साधुओं की पहचान अलग अलग कुंभ से भी होती है। कुंभ से उनका खास नाता होता है। यहां कहना गलत नहीं होगा कि नागा साधु की पहचान में कुंभ खास तौर पर भूमिका निभाते हैं। कुंभ और लंगोट का भी संबंध होता है। नागाओं का जीवन बहुत कठिन होता है, उन्हें ना गर्मी सताती है और ना कड़ाके की ठंड।
नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन तथा लम्बी होती है। नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में लगभग 06 वर्ष लगते हैं। कहा जाता है कि भारत में नागा साधुओं की संख्या 5 लाख से अधिक है।
नागा साधु बनने की प्रक्रिया अर्धकुंभ, महाकुंभ और सिंहस्थ के दौरान शुरू होती है। संत समाज के 13 अखाड़ों में से केवल 7 अखाड़े ही नागा बनाते हैं। ये हैं जूना, महानिरवाणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा।
नए सदस्य जब तक पूरी तरह पंथ में शामिल नहीं हो जाते तब तक एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वो लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूं ही रहते हैं।
कोई भी अखाड़ा अच्छी तरह जांच-पड़ताल कर योग्य व्यक्ति को ही प्रवेश देता है। पहले उसे लम्बे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है, फिर उसे महापुरुष तथा फिर अवधूत बनाया जाता है। अंतिम प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान होती है, जिसमें उसे खुद का पिण्डदान तथा दण्डी संस्कार करना होता है।
प्रयाग के महाकुंभ में दीक्षा लेने वालों को ‘नागा’ कहा जाता है। उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को ‘खूनी नागा’ कहा जाता है। हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को ‘बर्फानी’ और नासिक में दीक्षा लेने वालों को ‘खिचड़िया नागा’ कहा जाता है।
दीक्षा लेने के बाद नागा साधुओं को उनकी योग्यता के आधार पर पद भी दिया जाता है। नागा में कोतवाल, बड़ा कोतवाल, पुजारी, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत और सचिव इनके पद होते हैं। मूल रूप से नागा साधु के बाद महंत, श्री महंत, जमातिया महंत, थानापति महंत, पीर महंत, दिगंबर श्री, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर नाम के पद होते हैं।
नागा साधु तीन प्रकार के योग करते हैं जो उनके लिए ठंड से निपटने में मददगार साबित होते हैं। वे अपने विचार और खानपान, दोनों में ही संयम रखते हैं। नागा साधु एक सैन्य पंथ है और वे एक सैन्य रेजीमेंट की तरह बंटे हैं। त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम से वे अपने सैन्य दर्जे को दर्शाते हैं। नागा साधुओं के अनेक विशिष्ट संस्कारों मे ये भी शामिल है कि इनकी कामेन्द्रियन भंग कर दी जाती हैं।
ये नागा साधु हिमालय में शून्य से कम तापमान में नग्न होकर जीवित रहते हैं और काफी दिनों तक भूखे भी रह सकते है। उन्हें सर्दी, गर्मी और बारिश के सभी मौसमों में तपस्या के दौरान नग्न ही रहना पड़ता है। नागा साधु हमेशा जमीन पर ही सोते हैं। नागा साधु अखाड़े के आश्रमों और मंदिरों में रहते हैं। कुछ अपना जीवन हिमालय की गुफाओं या ऊंचे पहाड़ों में तपस्या करते हुए बिताते हैं। वे अखाड़े के आदेशानुसार पैदल भी भ्रमण करते हैं।
इस दौरान किसी गांव के रिज पर झोंपड़ी बनाकर धुनी रमाते है। यात्रा के दौरान वे भिक्षा मांगकर अपना पेट भरते हैं। वे एक दिन में एक ही समय पर भिक्षा के लिए केवल 7 घरों में जाते हैं। यदि सातों घरों से भिक्षा नहीं मिलती है, तो उन्हें भूखे पेट सोना पड़ता है।
कईं नागा साधु नियमित रूप से फूलों की मालाएं धारण करते हैं। इसमें गेंदे के फूल सबसे ज्यादा पसंद किए जाते हैं। इसके पीछे कारण है गेंदे के फूलों का अधिक समय तक ताजे बना रहना है। नागा साधु गले में, हाथों पर और विशेषतौर से अपनी जटाओं में फूल लगाते है। हालांकि कई साधु अपने आप को फूलों से बचाते भी हैं. यह निजी पसंद और विश्वास का मामला है.