नई दिल्ली। देश का दहेज उत्पीड़न कानून अब ऐसे कानूनों में शामिल होता जा रहा है, जिसका बहुत दुरुपयोग किया जा रहा है। भारतीय दंड संहिता की धारा 498- ए, किसी महिला को पति और उसके रिश्तेदारों की क्रूरता से बचाने के लिए लाया गया है। लेकिन इस कानून का व्यक्तिगत झगड़े और बदले की भावना को लेकर दुरपयोग किया जा रहा है। इस स्थिति को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि हाल के दिनों में देश में वैवाहिक मुकदमेंबाजी काफी बढ़ गई है और विवाह संस्था को लेकर अब पहले से अधिक असंतोष और टकराव की स्थितियां उत्पन्न हो गई है।
किसी भी कानून को बनाने का एक उद्देश्य होता है। इसे बनाने से पहले सभी संबंधित पहलूओं पर गंभीर चिंतन मनन के साथ ही और तर्कसंगत व्यवस्था रहती है, लेकिन जब इन कानूनों का दुरुपयोग होता है तो इससे वास्तविकता की पूर्ति नहीं होती है। ऐसे कानून लोगों के निजी हितों को सिद्ध करने का हथियार बन जाता है। समाज के स्तर पर इस तरह का काम किसी भी हालत में अच्छा नहीं है। भारतीय दंड संहिता आईपीसी की धारा 498-ए जैसे प्रावधानों का हथियार की तरह इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने बिहार के एक प्रकरण में बड़ी जबरदस्त महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। यह टिप्पड़ी न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े सभी लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण गंभीर संदेश है।
पटना उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए कहा गया है कि वैवाहिक विवाद के दौरान सामान्य आरोपों के माध्यम से झूठा फंसाए जाने को बिना जांच किए छोड़ दिया जाता है तो यह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। ऐसी स्थिति में अदालतों को आगाह किया जाता है कि जब पति के रिश्तेदारों और सास- ससुर के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला न बनता हो तो उनके खिलाफ कोई कार्यवाही आगे नहीं बढ़ाया जाय। न्यायालय का यह आदेश उचित और न्याय संगत है। खास बात यह है कि समाज को यह संदेश है कि वह अनावश्यक रूप से अपने हितों को साधने के लिए कानूनों का दूरपयोग कदापि न करें। विवाह एक पवित्र संस्था है जिसका सम्मान करना समाज का गुरुत्व दायित्व है यदि यह कमजोर होती है तो पूरा परिवार और समाज इससे प्रभावित होता है।