वास्तु। वास्तु शास्त्र के मौलिक सिद्धांतों में दिशा का भी एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। दिशा का ज्ञान होना वास्तु दोषों से बचने के लिए बेहद ज़रूरी है। हमारे जीवन में बहुत सारी समस्याएं केवल दिशाओं के गलत उपयोग के कारण आती है। हमारे शास्त्रों में रहन-सहन,व्यवहार,खाने-पीने के लिए दिशाओं का उपयोग किस प्रकार से किया जाए इसकी जानकारी होने से व्यक्ति अनेक प्रकार के कष्टों से तो बच ही जाता है और सुख-समृद्धि भी आती है।
सही दिशा में अच्छी नींद:-
वास्तु शास्त्र में सोते समय सिरहाना पूर्व एवं दक्षिण की ओर तथा पैर पश्चिम अथवा उत्तर की ओर रखने की सलाह दी जाती है क्योंकि पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का मानव जीवन में काफी प्रभाव पड़ता है। सिर दक्षिण तथा पैर उत्तर में करके सोने से शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृध्दि होती है,स्वास्थ्य उत्तम रहता है।इसी प्रकार अविवाहित कन्याओं का शयनकक्ष उत्तर-पश्चिम दिशा में होने से उनकी शादी में अड़चनें नहीं आती है।
उत्तर दिशा से अच्छा व्यापार:-
वास्तु शास्त्र के अनुसार, उत्तरी चुम्बकीय क्षेत्र को कुबेर का स्थान माना गया है अतः आप जब कभी किसी व्यापारिक चर्चा एवं परामर्श में भाग लें तो उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें क्योंकि उस समय उत्तरी क्षेत्र में चुम्बकीय ऊर्जा प्राप्त होती है और मस्तिष्क की कोशिकाएं तुरंत सक्रिय हो जाती हैं। आप अपने विचारों को अच्छी तरह से प्रस्तुत करने में सक्षम हो जाते हैं। उत्तर की ओर मुख करके बैठते समय आप अपने दाहिने हाथ की ओर चेक बुक,कैश आदि रखें।
अच्छी सेहत के लिए:-
पूर्व की ओर मुख करके भोजन करने से स्वास्थ्य उत्तम रहता है तथा आयु बढ़ती है। जिन लोगों के माता-पिता जीवित हैं उनको कभी भी दक्षिण दिशा की ओर मुख करके नहीं खाना चाहिए। अगर आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है तो आप पश्चिम दिशा की ओर मुख करके भोजन करें,इससे आपकी आर्थिक स्थिति में धीरे-धीरे सुधार आएगा और पैसा रुका रहेगा।
उत्तर दिशा की ओर मुख करके खाने से क़र्ज़ बढ़ता है,पेट में अपच की शिकायत हो सकती है। खाना बनाते समय गृहिणी को मुख पूर्व दिशा की ओर रखना चाहिए। यदि भोजन बनाते समय यदि गृहणी का मुख दक्षिण दिशा की ओर है तो त्वचा एवं हड्डी के रोग हो सकते हैं । रसोई में पीने के पानी की व्यवस्था ईशान कोण में करना शुभ परिणाम देगा।
रोग-प्रतिरोधक क्षमता में होगी वृद्धि:-
घर में भूमिगत जल की गलत स्थिति भी बहुत सारे रोगों का कारण होती है । उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में भूमिगत जल स्रोत धनदायक होते हैं एवं संतान को भी सुंदर निरोगी बनाते हैं। यहाँ निवास करने वाले सदस्यों के चेहरे पर कांति बनी रहती है। इन स्थानों पर जल की स्थिति रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करती है। दक्षिण-पश्चिम दिशा में प्रवेश द्वार या चाहरदीवारी अथवा खाली जगह होना शुभ नहीं है,ऐसा होने से हार्ट अटैक,लकवा,हड्डी एवं स्नायु रोग संभव हैं।
किराए के लिए दिशा:-
वास्तु शास्त्र के अनुसार किराएदार को हमेशा घर के उत्तर-पश्चिम दिशा में बना कमरा या पोर्शन ही किराए पर देना चाहिए। दक्षिण-पश्चिम में बने कमरे या पोर्शन में स्वामी को ही रहना चाहिए।