पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, चौदह विद्याओं में एक विद्या का नाम पुराण विद्या है। कहते हैं श्री हनुमान जी महाराज चौदह विद्याओं के पंडित हैं। गोस्वामी श्रीतुलसीदास जी महाराज श्री हनुमान चालीसा में लिखते हैं कि विद्यावान गुनी अति चतुर। राम काज करिबे को आतुर।। चौदह विद्याओं के नाम इस प्रकार हैं- पुराणं न्याय मीमांसा धर्म शास्त्रांग मिश्रिताः। वेदास्थानानि विद्यानां धर्मस्त्यच् चतुर्दशः।। पुराण, न्याय, मीमांसा और धर्मशास्त्र जिसको स्मृति कहते हैं। अट्ठारह स्मृतियां हैं। मीमांसा= वेदांत, वेदांत को ही मीमांसा कहते हैं। वो दो प्रकार का है,
पूर्व मीमांसा, उत्तर मीमांसा। चौथी विद्या धर्मशास्त्र है
धर्मशास्त्र में मनुस्मृति, याज्ञवल्क स्मृति, पराशर स्मृति आदि। फिर वेद के छः अंग- व्याकरण, ज्योतिष, कल्प, शिक्षा, निरुक्त,कर्मकाण्ड। चार वेद- ऋग्वेद,सामवेद,यजुर्वेद,अथर्ववेद।ये चौदह विद्याये हैं। लेकिन चौदह विद्याओं में पुराण विद्या को सबसे प्रथम गिना गया है। भगवान व्यास स्वयं कहते हैं। ‘पुराण विद्या च सनातनी ‘। यह विद्या सनातनी है। इसका मतलब द्वापर में पराशर महर्षि और व्यास जी पुराण की रचना करते हैं, इसके पहले पुराण नहीं था, ऐसा नहीं। सतयुग, त्रेता में भी पुराण रहता है, लेकिन लिपिबद्ध नहीं रहता, वह महर्षियों के मस्तिष्क में रहता है। उनके ज्ञान में रहता है। और जिस प्रकार चारों वेद अनादि है, उसी प्रकार पुराण भी अनादि। पुराण लिपिबद्ध भगवान व्यास अवतार लेकर द्वापर में करते हैं, लेकिन पुराण विद्या सनातनी है इसका प्रमाण रामायण में भी मिलता है। द्वापर से पहले त्रेतायुग में गुरुदेव श्री वशिष्ठ जी भगवान राम को पुराण सुनाते हैं। प्रातकाल सरयू करि मज्जन। बैठहिं सभा संग द्विज सज्जन।। वेद पुराण वशिष्ठ वखानहिं। सुनहिं राम यद्यपि सब जानहिं।। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।