पुराणों के अनुसार जानिए मां लक्ष्मी के हैं कितने स्वरूप…
उत्तराखंड। मां लक्ष्मी सिर्फ धन की अधिष्ठात्री नहीं हैं। ज्यादातर लोग उनका पूजन सिर्फ उन्हें धन की देवी मानकर करते हैं। धर्मग्रंथों के अनुसार मां लक्ष्मी धन के अलावा ज्ञान, संतान, धान्य, साहस और विजय भी प्रदान करती हैं। पुराणों के अनुसार मां लक्ष्मी के आठ रूप हैं, इसीलिए उन्हें अष्टलक्ष्मी भी कहा जाता है। मान्यता है कि अष्टलक्ष्मी की आराधना से मनुष्य की सभी समस्याओं का निवारण होता है। समृद्धि, धन, यश, ऐश्वर्य व संपन्नता प्राप्त होती है। आदि लक्ष्मी श्रीमद्भागवत पुराण में आदि लक्ष्मी को मां लक्ष्मी का पहला स्वरूप कहा गया है। इस अवतार को ऋषि भृगु की बेटी के रूप में भी जाना जाता है। इन्हें मूल लक्ष्मी या महालक्ष्मी भी कहा गया है। मान्यता है कि आदि लक्ष्मी मां ने ही सृष्टि की उत्पत्ति की है तथा भगवान विष्णु के साथ जगत का संचालन करती हैं। आदि लक्ष्मी की साधना से भक्त को जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति होती है। धन लक्ष्मी: यह धन और वैभव से परिपूर्ण करने वाली लक्ष्मी का रूप है। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने एक बार कुबेर देवता से धन उधार लिया, जो समय पर वो चूका नहीं सके, तब धन लक्ष्मी ने ही विष्णु जी को कर्ज मुक्त करवाया था। धन लक्ष्मी की पूजा करने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं तथा कर्ज से मुक्ति मिलती है। धान्य लक्ष्मी: धान्य लक्ष्मी मां का तीसरा रूप है। धान्य लक्ष्मी को मां अन्नपूर्णा का ही एक रूप माना जाता है। ये संसार में धान्य यानि अन्न या अनाज के रूप में वास करती हैं। इनको प्रसन्न करने के लिए कभी भी अनाज या खाने का अनादर नहीं करना चाहिए। इनकी आराधना करने से घर आनाज से भरा रहता है, घर में संपूर्णता रहती है। गज लक्ष्मी: मां गज लक्ष्मी को कृषि और उर्वरता की देवी के रूप में पूजा जाता है। राजा को समृद्धि प्रदान करने के कारण इन्हें राज लक्ष्मी भी कहा जाता है। यह पशु धन की देवी हैं, जो शक्ति देती हैं। गज लक्ष्मी माता हाथी पर कमल लेकर विराजमान होती हैं। इनकी पूजा से घर में कभी आर्थिक दिक्कत नहीं आती, ये राजसी शक्ति देती हैं। संतान लक्ष्मी: संतान या सनातना लक्ष्मी का यह रूप बच्चों को लम्बी उम्र देने के लिए है। संतान लक्ष्मी को स्कंदमाता के रूप में भी जाना जाता है। इनके चार हाथ हैं तथा अपनी गोद में कुमार स्कंद को बालक रूप में लेकर बैठी हुई हैं। संतान लक्ष्मी अपने भक्तों की रक्षा अपनी संतान के रूप में करती हैं, उन पर कोई दुख-दर्द नहीं आने देती हैं। वीर या वीरा लक्ष्मी: मां लक्ष्मी का ये रूप भक्तों को वीरता, ओज और साहस प्रदान करता है। पुराणों के अनुसार वीर लक्ष्मी मां युद्ध में विजय दिलाती हैं। वो अपने हाथों में तलवार और ढाल जैसे अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं। वह अपने भक्तों को जीवन में कठिनाइयों पर काबू पाने के लिए और लड़ाई में वीरता पाने ले लिए शक्ति प्रदान करती है। जय या विजय लक्ष्मी: विजया का मतलब है जीत। विजय लक्ष्मी जीत का प्रतीक है और उन्हें जाया लक्ष्मी भी कहा जाता है। मां के इस रूप की साधना से भक्तों की जीवन के हर क्षेत्र में जय-विजय की प्राप्ति होती है। वह एक लाल साड़ी पहने एक कमल पर बैठे, आठ हथियार पकड़े हुए रूप में दिखाई गयी हैं। वो यश, कीर्ति तथा सम्मान प्रदान करती हैं। विद्या लक्ष्मी: मां के अष्ट लक्ष्मी स्वरूप का आठवां रूप विद्या लक्ष्मी है। विद्या का मतलब शिक्षा के साथ साथ ज्ञान भी है, मां यह रूप हमें ज्ञान, कला और विज्ञान की शिक्षा प्रदान करती हैं, जैसा मां सरस्वती देती हैं। विद्या लक्ष्मी कमल पर सवार होती हैं, इनके चार हाथ है, दो हाथों में कमल और दो दो हाथ अभया और वरदा मुद्रा में हैं। मां लक्ष्मी को धन, वैभव, संपत्ति, यश और कीर्ति की देवी माना जाता है। मान्यता है कि मां लक्ष्मी की कृपा के बिना जीवन में समृद्धि और संपन्नता संभव नहीं है। मां लक्ष्मी अपने भक्तों की अनेक रूप में मनोकामनाएं पूरी करती हैं। धर्म ग्रंथों एवं पुराणों में मां लक्ष्मी के 8 स्वरूपों का वर्णन है, जिन्हें अष्टलक्ष्मी कहा जाता है। मां के ये अष्ट लक्ष्मी स्वरूप अपने नाम और रूप के अनुसार भक्तों के दुख दूर करते हैं तथा सुख, समृद्धि प्रदान करते हैं।