पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्या मोरारी बापू ने कहा कि ज्ञान कभी मिट नहीं सकता, क्योंकि वह तो नित्य वस्तु है, अज्ञान उसको ढंक तो सकता है, लेकिन मिटा नहीं सकता। सद्गुरु की कृपा से यह अज्ञान दूर होता है।
पहले ज्ञान की पूजा होती है। गजानन को प्रकट करना, ज्ञान को प्रकट करना है और ज्ञान को प्रकट करने के लिये ही सत्संग है, हरि कथा है। कथा भगवान् शंकर सुनाते हैं और माँ पार्वती सुनती हैं। इसका मतलब विश्वास सुना रहा है और श्रद्धा सुन रही है। तब गजानन का प्राकट्य होता है। आध्यात्मिक दृष्टि से गजानन विवेक के स्वरूप हैं, जो विवेक हमें सत्संग से प्राप्त होता है। विनु सत्संग विवेक न होई।
राम कृपा विनु सुलभ न सोई। पाप का कारण है वासना और वासना का कारण है अज्ञान, इसलिये ज्ञान को प्रकट करें, अज्ञान न रहे। वासना न रहेगी तो फिर पाप होगा ही नहीं। इसलिये पाप से बचने का जो वास्तविक उपाय है वो यही है कि ज्ञान को प्रकट करें। ज्ञान के समान कुछ पवित्र नहीं है। द्रव्य उपार्जन करना सरल है। पुरुषार्थ करना कुदरत की देन है। परंतु द्रव्य उपार्जन के लिए संघर्ष करना और सफल होकर उसी द्रव्य का वितरण करना कठिन है।
चार पुरुषार्थ हैं धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष। उसी प्रकार चार आश्रम है- ब्रह्मचार्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम और संस्यस्ताश्रम। ब्रह्मचार्याश्रम में विद्या, गृहस्थाश्रम में शुद्ध वृत्ति धन कमाना कर्तव्य है। यह दोनों पाकर समाज का कल्याण करना, ईश्वर की आराधना करना जो यह नहीं करता वह निकम्मा है। ज्ञान स्व के लिये और कर्म अन्य के लिये हो यही भक्ति है। जो विभक्त नहीं है वही तो भक्त है। कबीरा सोई पीर है जो जानत पर पीर।
जो पर पीर न जानै वह तो है काफिर, पर हित सरिस धरम नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन श्री दिव्य घनश्याम धाम गोवर्धन से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर
जिला-अजमेर (राजस्थान)।