मनोविज्ञान कहता है कि दर्पण के समान है मन: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, व्यक्ति जैसे वातावरण में जाता है मन उसको ही स्वीकार कर लेता है। मनोविज्ञान यह कहता है कि मन दर्पण के समान है। दर्पण जिस और करोगे, सामने जो दृश्य होगा दर्पण के अंदर वही दिखने लगेगा। दर्पण अपने तरफ से कुछ नहीं ग्रहण करता। पर जिस तरफ उसको मोड़ दो। आप परमात्मा के मंदिर में ठाकुर जी की ओर मोड़ दो,तो अन्दर ठाकुर जी दिखने लगेंगे। बुराई की तरफ मोड़ दो तो बुराई दिखने लगेगी। जैसे दर्पण प्रतिविम्वित करता है। इसी तरह हमारा आपका मन है। ये जिस संग में जायेगा, जो देखेगा, जो सुनेगा, वही मांगना शुरू कर देता है।बस! इसी तरह से आपके नेत्र और श्रवण से कोई बात अंदर तो जल्दी चली जाती है, लेकिन वो निकलती जल्दी नहीं है। इसीलिए शास्त्र कहते हैं कि आप हर बात में जरा सावधान रहो। असावधानी ही मृत्यु है, जीवन का पतन है। वेद भगवान कहते हैं- (प्रमादमयी मृत्यु महा– ) धर्मशास्त्र प्रमाद और आलस्य को ही मृत्यु कहते हैं। असावधानी ही व्यक्ति को जिंदगी का सबसे बड़ा खतरा है हमेशा सावधान रहो। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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