हेल्थ। देश में टाइप 1 डायबिटीज अब घातक होने लगा है। सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि, इससे सबसे ज्यादा प्रभावित बच्चे हैं। टाइप 1 डायबिटीज को चाइल्डहुड डायबिटीज भी कहते हैं। इससे महज 2 प्रतिशत ही पीड़ित लोग हैं लेकिन यह टाइप 2 के मुकाबले ज्यादा खतरनाक है।
टाइप 1 डायबिटीज में शरीर में इंसुलिन नहीं बनता। अगर समय से इलाज शुरू न हो तो एक हफ्ते में मरीज की जान जा सकती है। इंसुलिन की खोज से पहले टाइप 1 से पीड़ित बच्चे एक महीने के भीतर दम तोड़ देते थे।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने बीमारी की गंभीरता को देखते हुए गाइडलाइंस जारी किया है। गाइडलाइन में कहा गया है कि समय रहते बीमारी की पहचान और बेहतर इलाज से अधिक बच्चों को बचाया जा रहा है। लेकिन इस ओर अधिक जागरुकता फैलाने की जरूरत है।
टाइप 1 क्यों है ज्यादा खतरनाक:-
टाइप 1 एक ऐसी स्थिति है जिसमें पैंक्रियाज पूरी तरह इंसुलिन बनाना बंद कर देता है। जबकि टाइप 2 डायबिटीज में इंसुलिन बनना कम होता है या कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति प्रतिरोधक क्षमता ग्रहण करती हैं। टाइप 1 डायबिटीज बच्चों और किशोरों में अधिक होता है। हालांकि इस बीमारी से पीड़ितों की संख्या कम है लेकिन यह टाइप 2 के मुकाबले अधिक घातक है।
टाइप 2 डायबिटीज में राहत की बात यह होती है कि बॉडी में कुछ इंसुलिन बनता है। अगर पीड़ित दवा ले रहा हो तो इस पर नियंत्रण रहता है। लेकिन टाइप 1 डायबिटीज में यदि इंसुलिन लेना बंद किया तो पीड़ित की सप्ताह भर के अंदर मौत हो सकती है।
लगती है बेतहाशा प्यास:-
जो बच्चे इस बीमारी से पीड़ित हैं उनमें बेतहाशा प्यास लगने, बार-बार पेशाब लगने के लक्षण दिखते हैं। इनमें से एक तिहाई बच्चों को डायबिटिक किटोएसिडोसिस होता है। कुछ ही दिनों के अंदर वजन घटने लगता है।
जेनेटिक कारण है जिम्मेदार:-
टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित लोगों में जेनेटिक फैक्टर महत्वपूर्ण होता है। यदि मां टाइप 1 से पीड़ित है तो बच्चे में इसे होने का खतरा 3 प्रतिशत, जबकि पिता के इससे ग्रसित होने पर बच्चे में 5 प्रतिशत खतरा होता है। कुछ खास तरह के जीन भी इस बीमारी से जुड़े होते हैं। जैसे-DR3-DQ2 और DR4-DQ8 जीन टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित 30-40 प्रतिशत लोगों में होता है जबकि सामान्य आबादी में यह महज 2.4 प्रतिशत होता है।
ग्लूकोज की होती है मॉनिटरिंग: अब ग्लूकोज मॉनिटरिंग डिवाइस भी उपलब्ध है जिसमें सेंसर के जरिए ब्लड ग्लूकोज लेवल को जांचा जाता है।
आर्टिफिशियल पैंक्रियाज: यह न केवल ब्लड ग्लूकोज लेवल को मॉनिटर करता है बल्कि यह ऑटोमेटिक रूप से बॉडी को इंसुलिन भी देता है जब इसकी जरूरत होती है।