पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। अपनी मां और अपनी जन्मभूमि यह स्वर्ग से भी ज्यादा प्रिय है, स्वर्ग के सुखों से भी ज्यादा मधुर है। जो संतान अपने माता-पिता का सम्मान नहीं करते या जो संतान माता-पिता के प्रति स्नेह और श्रद्धा नहीं रखते, वे शास्त्रीय मर्यादा से नीचे गिर रहे हैं। माता-पिता के प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिये। हमारे वेद भगवान् कहते हैं- मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। आचार्य देवो भव। अतिथि देवो भव। इन चार का सम्मान करना सीखो। माता-पिता, गुरु और भोजन के समय पर आया हुआ अतिथि। चारों परमात्मा के स्वरूप हैं, पुत्र बधु के लिये सास-ससुर, पति और आया हुआ अतिथि। अगर कोई कन्या अपने पति से ये कहती है कि मेरा विवाह आपके साथ हुआ है। मैं आपकी सेवा करूंगी। सारे घर का ठेका मैंने नहीं लिया। तो समझना चाहिये कि ऐसी पुत्रवधू पर आधुनिकता का भूत सवार हो गया है। हम किसी की दुकान किराये से लेते हैं किराया देते हैं कि नहीं? जिसने मकान बनाया, मकान उसका हुआ ना और उससे अगर हम दुकान लेते हैं तो किराया देते हैं। तुम्हें जो पति मिला है, वो आसमान से टपका हुआ है कि सासु-ससुर की सेवा परिश्रम का फल है। सासु और ससुर ने पैदा करके पालने में कितना कष्ट उठाया होगा और अब तुम कहते हो कि हम तो केवल पति की सेवा करेंगे,हम सासु-ससुर की सेवा नहीं कर सकते। ननंद-देवर की सेवा नहीं करेंगे। आये-गये अतिथियों की सेवा नहीं करेंगे, तो ये गलत हो जायेगा। जब हम किसी की दुकान लेते हैं तो किराया देते हैं, तो सासु और ससुर ने पुत्र पैदा करके पाला पढ़ाया। इसलिए उनकी सेवा करना ये हमारी नैतिकता है। ये हमारा कर्तव्य भी होता है। जो नर-नारी अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते, उनका हृदय शुद्ध नहीं होता, और जब तक हृदय शुद्ध नहीं होगा, तब तक भक्ति-ज्ञान की जागृति नहीं होगी। भक्ति-ज्ञान की जागृति के बिना भगवत दर्शन नहीं होगा, और भगवत दर्शन के बिना आपको शांति नहीं मिल सकती। तात्कालिक सुख तो आपको मिल जायेगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)