लखनऊ। न्यायालयों में भ्रष्टाचार गम्भीर और गहरी चिन्ता का विषय है। इस सम्बन्ध में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की प्रशासनिक समिति की ओर से दोषी पाये गये एडीजे रैंक के तीन न्यायिक अधिकारियों की सेवाएं समाप्त करने की संस्तुति की गई है, जो उचित और न्यायपालिका की गरिमा के अनुरूप है। यह उच्च न्यायालय का न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के खिलाफ सार्थक कदम है।
पीड़ित व्यक्ति न्यायालय का दरवाजा इस भरोसे और विश्वास पर खटखटाता है कि उसे न्याय मिलेगा। न्यायपालिका की शुचिता बनाये रखने की जिम्मेदारी न्यायालयों की है। हालांकि तीनों न्यायिक अधिकारियों की काररवाई की अधिसूचना अभी जारी नहीं की गयी है। प्रदेश के पांच न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ मिली शिकायतों की जांच में दो के खिलाफ पुख्ता सबूत न मिलने के कारण उन्हें बरी कर दिया गया, जबकि तीन न्यायिक अधिकारियों को दोषी पाया गया, जिन्हें बर्खास्त करने की संस्तुति राज्यपाल को भेजी गयी है जिसकी मंजूरी राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल से कभी भी मिल सकती है। जिन तीन अधिकारियों के खिलाफ बर्खास्तगी की संस्तुति की गयी है,
उनमें बदांयू से निलम्बित अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश अशोक कुमार सिंह, बलिया से निलम्बित अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश हिमांशु भटनागर तथा सिद्धार्थनगर के विशेष न्यायाधीश (अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम) डाक्टर राकेश कुमार जैन शामिल हैं। उच्च न्यायालय की भ्रष्ट अधिकारियों पर की गयी अनुशासनात्मक काररवाई उचित और स्वागत योग्य है। इससे जनता का न्यायपालिका पर विश्वास बढ़ेगा। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की काररवाई अन्य राज्यों के लिए भी अनुकरणीय है। न्यायपालिका में भ्रष्टाचार नहीं होना चाहिए। इस पर कड़ी निगाह रखने की जरूरत है।