बिना सोचे-समझे न बढ़ाई जाए विचाराधीन कैदियों की न्यायिक हिरासत: हाईकोर्ट
नई दिल्ली। उच्च न्यायालय ने जिला अदालतों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि किसी भी विचाराधीन कैदी की न्यायिक हिरासत अवधि यांत्रिक रूप से नहीं बढ़ाई जाए। अदालत ने स्पष्ट किया कि न्यायिक हिरासत अवधि बढ़ाने से पहले सीआरपीसी के प्रावधानों का पालन सुनिश्चित किया जाए व आरोपियों को उनके अधिकार क्षेत्र की जानकारी दी जाए। यह भी तय किया जाए कि तय समय पर आरोपपत्र दायर न होने पर विचाराधीन कैदियों को डिफ़ॉल्ट जमानत लेने के अधिकार का हनन न हो। न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने यह भी कहा कि किसी विचाराधीन विचाराधीन या उसके विस्तार को न्यायिक कार्य के लिए रिमांड पर लेने का आदेश दिया जाता है तो उसके लिए पहले उचित तरीके से विचार किया जाए। उन्होंने निर्देश दिया कि संबंधित मजिस्ट्रेट-संबंधित न्यायालय विचाराधीन कैदी की हिरासत को बढ़ाते समय निर्धारित अधिकतम 15 दिनों की अवधि को यांत्रिक रूप से नहीं बढ़ाएगा। उन्होंने तय नियमों के तहत जांच पूरी करने और चार्जशीट दायर करने का समय 60 , 90 या 180 दिन (अपराध की प्रकृति और किसी विशेष अधिनियम की प्रयोज्यता के आधार पर) तय है और उसको ध्यान में रखकर हिरासत बढ़ा दी जाएगी। यदि इस तरह के 60 वें, 90 वें या 180 वें दिन 15 दिनों की अधिकतम विस्तार अवधि से पहले पड़ता है, तो हिरासत केवल 60 वें, 90 वें या 180 वें तक बढ़ाई जाएगी। अदालत ने स्पष्ट किया कि विचाराधीन कैदी को अगले दिन यानी 61, 91 तारीख को यानी 181 तारीख को संबंधित अदालत के समक्ष पेश किया जाएगा, ताकि यदि निर्धारित अधिकतम अवधि या जांच की अनुमत विस्तारित अवधि में कोई चार्जशीट दाखिल न की जाती है तो उसे डिफॉल्ट जमानत लेने के अपने मौलिक अधिकार की विधिवत जानकारी दी जा सके।
अदालत ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को यह सुनिश्चित करने के लिए भी निर्देश जारी किया है कि आपराधिक न्यायालयों में तैनात रिमांड अधिवक्ताओं, विधिक सहायता परामर्शदाताओं को विचाराधीन कैदी को डिफ़ॉल्ट जमानत प्राप्त करने के अपने अधिकार और ऐसे अधिकार के उपार्जन की तारीख के बारे में सूचित किया जाए। अदालत ने जेल अधिकारियों को भी निर्देश दिया है कि जब डिफ़ॉल्ट जमानत प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त होता है तो उस तारीख के विचाराधीन विचाराधीन को सूचित करने के लिए एक समान बाध्यता होनी चाहिए। अदालत ने सभी जिला अदालतों के प्रमुख को भी इस आदेश के पालन को सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। अदालत ने यह आदेश एक विचाराधीन कैदी की याचिका पर दिया है। याची ने सत्र न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उसके डिफ़ॉल्ट जमानत की मांग करने वाली उनकी अर्जी को खारिज कर दिया था। याची ने कहा उसे 18 जनवरी 20 को गिरफ्तार किया गया था और 19 जनवरी 20 को मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया व उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। याची ने कहा उसकी न्यायिक हिरासत समय-समय पर बढ़ा दी गई थी, जिसमें 15 अप्रैल 20 को उनकी हिरासत 29 अप्रैल 20 तक बढ़ा दी गई थी। चार्जशीट दाखिल करने के लिए निर्धारित 90 दिनों की समयावधि 18 अप्रैल 20 को समाप्त हो गई। बावजूद उसे जमानत प्रदान नहीं की गई। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को 25 हजार रुपये के निजी मुचलके व एक अन्य जमानत राशि की शर्त पर डिफॉल्ट जमानत दे दी।