हमें अत्यंत सादगी पूर्ण जीवन करना चाहिए निर्वाह: दिव्य मोरारी बापू
राजस्थान/पुष्कर। सात्विक दान की महिमा श्रीमद्भगवद्गीता-हमारे यहां कमाई का दशांश दान अर्थात परोपकार में लगाने की बात कही गई है, वही कमाई सार्थक मानी गयी है, स्थायी रह पाती है। परोपकार की, सेवा की, प्रवृत्ति केवल मनुष्य में पायी जाती है, दान के अनेक स्वरूप हैं, जैसे- धन दान, ज्ञान दान, विद्या दान, समय दान आदि। निःस्वार्थ परोपकार, सेवा दान को आदर्श दान माना गया है। इसके पीछे किसी प्रतिफल, मान-सम्मान, प्रचार आदि की कामना नहीं होती। इसे गुप्त दान कहा गया है। आज व्यक्ति गलत सही ढंग से अपार धन कमाता है और उसमें से कुछ राशि जन सुविधाओं तथा धार्मिक कार्यों में लगाकर, गर्व कर, अपने को दानी समझ लेता है। समाज में भी ऐसे व्यक्ति को दानवीर की संज्ञा देने में नहीं हिचकते। तर्क यह दिया जाता है कि भले ही धन गलत रीति से कमाया हो, आखिर जनोपयोग में तो आता है। यह एक प्रकार का भ्रमजाल है। गलत रीति से धन की कमाई से उसने जो समाज का बड़ा अनिष्ट किया है, भ्रष्टाचार फैलाया है, उसको देखते हुये यह दान धर्म नगण्य है। अनीति की कमाई से दान करने, धार्मिक समारोह करने से अच्छा है, जनता बिना सुविधाओं के रह जाये और इस पर नियंत्रण कर सके, ताकि उन्हें अपना वास्तविक हक स्वतः मिल सके। धन साधन है। धन से हम धर्म भी कमा सकते हैं और धन से हम अधर्म यानी पाप भी कमा सकते हैं। धन की प्रथम गति धर्म है धन की दूसरी गति भोग है और न परोपकार में लगाया, न अपने काम में लगाया तो धन की तीसरी गति नाश है। धन हमारी या हमारे परिजनों की बुद्धि को नष्ट करके अत्यन्त हानि करता है। इसलिए धन की श्रेष्ठ गति धर्म है, धन को परोपकार के कार्यों में लगाना चाहिए।अत्यंत सादगी पूर्ण जीवन निर्वाह करना चाहिए। केवल धन पाने मात्र से जीवन धन्य नहीं हो जाता। सात्विक ढंग से धन प्राप्त करे और परमार्थ के कार्यों में लगाने से मंगल होता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।