यह कैसा संस्कार…

नई दिल्ली। भागमभाग की जिंदगी और पाश्चात्य सभ्यता से वशीभूत देश के नौजवान आज अपने ही जीवनदाता मां-बाप को बोझ समझने लगे हैं। इस तरह की सोच मध्यम एवं निम्न परिवार में कम और पढ़े-लिखे, ज्ञानवान, धनवान और सभ्य समाज में ज्यादा देखने को मिलती है। पूरी दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है जहां तीन पीढ़ियां एक ही घर में जीवन बिता देती थीं। पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव से सबसे ज्यादा ह्रास भारतीय संस्कार का हुआ है, परिणाम यह हुआ है कि बुजुर्गों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ी हैं। ऐसे में बुजुर्गों की सुरक्षा आवश्यक है।

माता-पिता की सम्पत्ति को अपने नाम करने के बाद उनकी उपेक्षा किया जाना आम बात हो गयी है। ऐसे में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो टिप्पणी की है वह सभ्य समाज के लिए एक गंभीर सन्देश है। बुजुर्ग महिला की उपेक्षा सम्बन्धी मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने कहा है कि बुजुर्ग माता-पिता का ख्याल रखने के लिए बड़े घर की नहीं, बल्कि बड़े दिल की जरूरत होती है। न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकान्त की खण्डपीठ ने बेटे को नोटिस जारी करते हुए उसकी चल या अचल सम्पत्ति के हस्तान्तरण पर रोक लगाते हुए बेटियों को मां की जिम्मेदारी सम्भालने को कहा है।

बुजुर्ग महिला की बेटियों पुष्पा तिवारी और गायत्री कुमारी ने याचिका दाखिल कर भाई पर आरोप लगाया है कि उसने मां की सम्पत्ति अपने नाम पर कर मां को अज्ञात स्थान पर रखा है और उनसे किसी को भी मिलने नहीं दिया जा रहा है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपना कर उचित कदम उठाया है। देश में बुजुर्गों की दयनीय दशा को बदलने के लिए कड़े कानून के साथ संस्कारगत सोच आवश्यक है। सरकार ने नियम बनाये हैं लेकिन उसके बावजूद समाज में जो देखने को मिल रहा है, वह चिन्तनीय है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *