नई दिल्ली। अगर दुनिया वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी (ग्लोबल वार्मिंग) को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक भी सीमित रखती है, तो भी जलवायु संबंधी खतरे बने रहेंगे। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की एक रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि जलवायु अनुकूलन की लागत और वर्तमान वित्तीय प्रवाह के बीच खाई चौड़ी होती जा रही है। दरअसल यूएनईपी ने ग्लासगो में जारी ‘सीओपी-26′ शिखर सम्मेलन के दौरान टअनुकूल अंतराल रिपोर्ट 2021: बड़ा होता तूफान’ जारी की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘ग्लोबल वार्मिंग’ वर्तमान में 1.1 डिग्री सेल्सियस है और दुनिया ने 2021 में जलवायु संबंधी तबाही देखी है, जो यूरोप और चीन में बाढ़ की शक्ल में आई, जबकि उत्तर पश्चिम प्रशांत में लू चली, यूनान के जंगलों में आग लगी और भारत में बाढ़ आई और मानसून अस्थिर रहा। रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुकूलन की लागत सिर्फ विकासशील देशों के लिए 2030 तक अनुमानित तौर पर 140-300 अरब डॉलर और 2050 तक 280-500 अरब डॉलर प्रति वर्ष हो सकती है। रिपोर्ट मामले में यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने कहा कि अगर हम आज ही ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन पूरी तरह से बंद कर दें, तो भी जलवायु परिवर्तन का प्रभाव हम पर दशकों तक रहेगा। बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीओपी-26 जलवायु शिखर सम्मेलन में बड़े देशों को चेताया था। अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा था कि हमें प्रकृति से तालमेल बिठाकर चलना होगा। उन्होंने कहा था कि अगर हमें फिर से प्रकृति के साथ संतुलित जीवन का संबंध स्थापित करना है तो इसका रास्ता हमारे सूर्य से ही प्रकाशित होगा। मानवता के भविष्य को बचाने के लिए हमें फिर से सूरज के साथ चलना होगा। जितनी ऊर्जा पूरी मानव जाति सालभर में उपयोग करती है, उतनी ऊर्जा सूर्य एक घंटे में धरती को देता है। ये अपार ऊर्जा पूरी तरह स्वच्छ और सतत है।