राजस्थान/पुष्कर। गौ माता की उत्पत्ति पुराणों में समुद्र मंथन के समय बतायी गयी है। समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले- श्री मणि रम्भा वारूणी अमिय शंख गजराज। कल्पद्रुम शशि धेनु धनु धनवंतरि विष वाजि। भगवतीलक्ष्मी, कौस्तुभमणि, अप्सराएं, मदिरा, पांचजन्य शंख, ऐरावत हाथी, कल्पवृक्ष, चंद्रमा, सुरभि नामक कामधेनु गाय, सारंग धनुष, अमृत कलश के साथ भगवान धन्वंतरि, उच्चैश्रवा नामक अश्व। गौमाता अनन्त ब्रह्मांड की मूल्यवान रत्न-गोधन गजधन वाजिधन और रतन धन खान। जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान। धरती पर जितने मूल्यवान रत्न बताये गये, उनमें सबसे पहला नाम गोधन का है। सर्वदेवमयी गौ माता-सत्य सनातन हिंदू धर्म में तैंतीस कोटि देवी देवताओं का वर्णन है। तैंतीस कोटि से दो आशय प्रगट होता है। दोनों ही सनातन धर्म में मान्य है।तैंतीस कोटि अर्थात्-तैंतीस करोड़ देवी देवता हैं। यहां कोटि का अर्थ संख्या से है। अथवा-कोटि का अर्थ प्रकार से भी होता है। देवि देवताओं की जो अनन्त संख्या हैं, उनमें तैंतीस प्रकार हैं। वह इस प्रकार है-एकादश (11) रुद्र, द्वादश (12) आदित्य, अष्ट(8) वसु, दो (2) अश्वनी कुमार। सर्वदेवमयी गौ माता- एक बार समस्त देवी देवताओं ने मंत्रणा किया कि अगर कोई भक्त सभी देवि देवताओं के नाम से एक-एक अगरबत्ती भी जलावे तो करोड़ों अगरबत्ती हुई, जो संभव नहीं है और एक दिन सम्भव भी हो जाय तो भी नित्य सभी देवि देवताओं की पूजा सम्भव नहीं है। अगर सभी देवता एक ही स्थान पर वास करें, तो एक ही सेवा पूजा से सभी देवताओं की सेवा पूजा हो जाय। तब देवताओं ने निर्णय किया कि गाय माता में सभी देवताओं का वास हो। सभी देवी-देवता गाय माता के एक-एक रोम में स्थान प्राप्त किये। लक्ष्मी माता और सरस्वती माता को आने में विलम्ब हो गया। गाय माता के गोबर में लक्ष्मी जी ने अपना वास बनाया और गोमूत्र में माता सरस्वती ने अपना वास बनाया। इसीलिए अपने यहां पूजा पाठ की समय गाय के गोबर से चौका और उसी के उपले को यज्ञ में भी काम में लेते हैं। गोमूत्र गंगा जल के समान पवित्र माना जाता है। गाय की सेवा से सभी देवी देवताओं की सेवा पूजा हो जाती है। सर्ववेदमयी गौ माता-गौ माता में सभी देवताओं के साथ-साथ समस्त वेद मंत्र भी प्रतिष्ठित हैं। गौ सेवा से वेद का अनुष्ठान भी पूर्ण होता है। अपने भारत देश में सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक जीवन में गाय तथा गोवंश का कितना महत्व रहा है, इनकी कितनी उपयोगिता रही है, यह किसी से छिपा नहीं है। अब तो गाय के दूध, गोमूत्र तथा गाय के गोबर की औषधीय उपयोगिता भी सिद्ध हो चुकी है। अतः गाय व गोवंश का संरक्षण तथा संवर्धन देश के हित में सर्वोपरि होना चाहिए तथा गौ हत्या सर्वथा वर्जित की जानी चाहिए। गाय भारतवर्ष का राष्ट्रीय रत्न है। अतः इसके प्रतिनिष्ठा रखना भारतवर्ष के प्रति निष्ठा रखने के समान है। हमारे वैदिक ऋषियों ने गाय के प्रति हार्दिक निष्ठा अभिव्यक्त की है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।