राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि ऊँ सर्व चैतन्यरूपां तामाद्यां विद्यां च धीमहि बुद्धिं य नः प्रचोदयात्। ये देवी माँ का गायत्री मंत्र है, संसार में जितनी चेतना है, उस सब चेतना में मां आप ही प्रकट हो, आप ही चेतना के स्वरूप हो। मां आप आद्याशक्ति हो, हम आपका ध्यान करते हैं। हम आपको बारंबार प्रणाम करते हैं। बुद्धिं य नः प्रचोदयात् हे मां हमारी बुद्धि को निर्मल बना दो। हमारी बुद्धि को शुद्ध कर दो, ताकि हमारे द्वारा बुरे कार्य न हों। मनुष्य का शरीर रथ की तरह है। इंद्रियां घोड़े हैं, मन लगाम है, बुद्धि सारथी है। अगर सारथी नशे में है तो रथ कहीं टकरा जायेगा। सारथी ठीक है तो कुछ कल पुर्जे ढीले हों तो भी किनारे लगा देता है। इस शरीर रूपी रथ के मालिक हम स्वयं अर्थात् आत्मा है। मालिक की जिंदगी तो सारथी के हाथ में है। अगर सारथी असावधानी करता है तो मालिक की जिंदगी से खिलवाड़ करता है। हम आद्या शक्ति मां की आराधना करते हैं तो मां हमारी बुद्धि को शुद्ध बना देती है। अथवा तो ये कहें कि मां हमारी बुद्धि में स्वयं प्रतिष्ठित हो जाती है और जिसके जीवन में मां बुद्धि रूप में विराजमान हो गयी, उसका जीवन सफल है इसमें कोई संदेह नहीं है। मां अपने भक्तों की बुद्धि में स्वयं विद्यमान रहती है और भक्त सत्- मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सफल बनाते हैं। मां भगवती से और कुछ मांगे या न मांगे, लेकिन शुद्ध बुद्धि अवश्य मांगना चाहिये।
सब कुछ हमारे पास हो, लेकिन बुद्धि बिगड़ जाय तो सब व्यर्थ है। और कुछ भी न हो लेकिन बुद्धि श्रेष्ठ हो तो सत्कर्म करके हम अपना कल्याण कर लेते हैं। रावण के पास सब कुछ था। श्रेष्ठ कुल में जन्म,चारो वेदों का पांडित्य, बड़ी-बड़ी तपस्या, सब कुछ था लेकिन बुद्धि बिगड़ी तो आज तक भी उस का पुतला जलाया जाता है। नाम ही बदनाम हो गया, आज कोई अपने बच्चे का नाम रावण रखने को तैयार नहीं है। किसी को रावण कह दो वह बहुत दुःख मानता है कि हमने ऐसा क्या बुरा किया जो आपने हमको रावण कहा? दूसरी तरफ मां शबरी के पास कुछ भी नहीं था। भील कुल में जन्म हुआ था, पढ़ी-लिखी बिल्कुल नहीं थी, बहुत बचपन में ही मतंग ऋषि की शरणागति प्राप्त कर ली भजन किया। संत, सद्गुरु, सत्संग और ईश्वर की कृपा से बुद्धि श्रेष्ठ थी। तो मंदिर वाले भगवान शबरी मां के दरवाजे पर गये। आज तक भी मां शबरी की यश गाथा गायी जाती है। शबरी धन्य हो गयी, छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम और वात्सल्यधाम) का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री- श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में, चातुर्मास के अवसर पर चल रहे श्री मार्कंडेय महापुराण के तृतीय दिवस की कथा में मां की महिमा का गान किया गया। कल की कथा में मां के अनेक भक्तों की कथा का गान होगा।