Jammu-kashmir : जम्मू से कठुआ की तरफ आगे बढ़ने पर सांबा-कठुआ की सीमा पर एंट्री प्वाइंट लोंडी मोड़ से लडवाल होते हुए भारत का आखिरी गांव बोबिया है। बोबिया से पहाड़पुर तक की 16 पंचायतों के लगभग 30 हजार लोग जीरो लाइन पर रहते हैं। पूरे गांव में डर और दहशत नहीं है, पर पहलगांव आतंकी हमले के बाद उत्पन्न हुई स्थिति में माहौल पर गंभीर असर पड़ा है। मगर स्मृतियों में उसकी दहशत अब भी ताजा है। यह इलाका जितना ही शांत दिखता है, दरअसल उतना है नहीं। क्योंकि आतंकी हमले के कारण बीते 35 वर्षों से आतंकियों की घुसपैठ के कारण अक्सर सुर्खियों में रहता आया है।
पहलगाम आतंकी हमले में बायसरन में जो कुछ हुआ, उसके बाद से यहां यहां काफी तनावपूर्ण और शांति का माहौल है। शाम ढलने के बाद गांव की चौपाल पर बुजुर्गों का इकट्ठा होना, घरों की छतों पर घूमना, दिन ढलने के बाद घर के आंगन में बिना किसी डर के बच्चों का खेलना फिलहाल बंद है। बलवंत राज का कहना है कि इलाके में लोग रात बंकरों में गुजार रहे हैं। खेतों में जाने के लिए भी किसानों को सोचना पड़ रहा है। गेहूं की फसल की कटाई तो हो गई है, अगली फसल की तैयारी कैसे करें, यह उनके लिए चिंता बनी हुई है।
अगली फसल बोने के बारे में तय नहीं कर पा रहे
गुज्जर चक गांव पहुंचने पर अनित मिलते हैं। लोगों का कहना है कि करीब 20 वर्षों बाद तारबंदी के आगे की भूमि पर खेती का काम 2021 में शुरू हुआ था। धीरे-धीरे यह खेता का यह सिलसिला आगे बढ़ता रहा और लोगों ने इस बार करीब 160 एकड़ भूमि पर तारबंदी के आगे गेहूं की फसल उगाई थी, जिसे समेट भी लिया है। मगर, अब फिर से तनावपूर्ण माहौल ने फिर इन्हें अगली फसल बोने के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया है।
हालाम सामान्य होने की उम्मीद
बोबिया में सभी भारत-पाकिस्तान के मौजूदा हालात पर चर्चा कर रहे थे। पहलगाम के बाद जीरो लाइन का हाल पूछते ही कहते हैं कि गोलीबारी में यहां के लोगों की जिंदगी ठहर सी जाती है। वहां के लोगों की जिंदगी आसान नहीं रही। सीमावर्ती के लोगों ने बताया कि शरणार्थी कैंपों में दिवाली से लेकर करवाचौथ तक मनाई है। महीनों तक इसी आस में रहते हैं कि कब हालात हालात सामान्य होंगे, लेकिन कभी ऐसा हुआ ही नहीं। लोग यह जानते हैं कि इस बार युद्ध हुआ तो सब आसान नहीं होगा, लेकिन उन्हें यह भी उम्मीद है कि शायद इससे कई और दशकों तक आतंकवाद और पाकिस्तान की ओछी हरकतों से शांति मिल जाए।
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